Jharkhand Tourism: बेतला पार्क के अलावा पलामू का भीम चूल्हा है बेहद ऐतिहासिक, नये साल में उमड़ती है भीड़

भीम चूल्हा प्रमंडल मुख्यालय मेदिनीनगर के सड़क मार्ग से 95 किमी दूर है. जबकि अनुमंडल मुख्यालय हुसैनाबाद से करीब 30 किलोमीटर है. नये साल में तो यहां पर लोगों की भीड़ उमड़ती है

By Sameer Oraon | December 30, 2022 2:17 PM
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झारखंड के पलामू की खूबसूरती से तो हर लोग वाकिफ ही हैं. यहां की खूबसूरती का दीदार करने के लिए देश विदेश से सैलानी पहुंचते हैं. बेतला पार्क इसका जीता जागता उदाहरण है. लेकिन पलामू में कई ऐसे धार्मिक पर्यटन स्थल है जो बेहद ऐतिहासिक है. इनमें से एक है भीम चूल्हा. नये साल पर तो यहां लोगों की भीड़ उमड़ती है. ये जगह जिले के मोहम्मदगंज प्रखंड में कोयल नदी के तट पर स्थित है.

भीम चूल्हा प्रमंडल मुख्यालय मेदिनीनगर के सड़क मार्ग से 95 किमी दूर है. जबकि अनुमंडल मुख्यालय हुसैनाबाद से करीब 30 किलोमीटर है. अगर आप यहां पर आना चाहते हैं तो मेदिनीनगर से डेहरी जाने वाली रेल मार्ग पर मोहम्मदगंज रेल स्टेशन पर उतर कर भी स्थानीय वाहन से जा सकते हैं. यहां से महज तीन किमी की दूरी पर भीम चूल्हा स्थित है. लेकिन, अगर आप बस आ रहे हैं तो हुसैनाबाद बस स्टैंड से उतरना होगा. इसके बाद आप निजी वाहन के जरिये भीम चूल्हा पंहुच सकते हैं. यहां से इसकी दूरी 18 किलोमीटर है.

भीम चूल्हा पलामू जिले का एक खूबसूरत धार्मिक पर्यटन स्थल है जो कोयल नदी के तट पर स्थित है. लेकिन उत्तरी कोयल परियोजना के तहत बना मोहम्मदगंज बराज इसकी खूबसूरती में चार चांद लगा देता है. किवदंतियों के अनुसार इस 5 हजार साल पुराने इस चूल्हे पर पांडव अपने अज्ञातवास के दौरान भोजन बनाया करते थे. यहां तीन विशाल शिलाखंडों को जोड़कर चूल्हा बनाया गया है.

वर्तमान में जिला प्रसाशन द्वारा एक विशाल कढ़ाई इसके ऊपर बनवाया गया है जिससे इसकी खूबसूरती और बढ़ जाती है. पास में एक मंदिर भी है जिसके सामने माता कुंती सहित पांच पांडवों का आदमकद प्रतिमा बनाया गया है. यहां पत्थर पर पांडवों के पद चिन्ह भी है. कोयल नदी के तट पर शिलाखंडों से बना यह चूल्हा पांडवों के इस इलाके में ठहराव का मूक गवाह है.

भीम चूल्हा के पास ही एक पत्थर का हाथी भी है जो सैलानियों का ध्यान खींचता है. इस हाथी को लेकर भी कई किंवदंतियां है. स्थानीय लोगों के अनुसार ऐसी मान्यता है कि इस हाथी को बलवान होने का घमंड था. एक दिन वह भीम से भीड़ गया. भीम के साथ हुए युद्ध में जब वो पराजित हुआ तो वहीं बैठ गया. युवाओं के लिए यह पत्थर का हाथी एक आकर्षक सेल्फी पॉइंट भी है.

यहां करीब 75 साल से मकर संक्रांति के अवसर पर विशाल मेला लगता है. इस मेले में झारखंड के अलावा  बिहार, उत्तर प्रदेश, बंगाल, मध्य प्रदेश से भी लोग जुटते हैं. यह मेला जहां एक तरफ धार्मिक मान्यताओं से जुड़ा हुआ है वहीं दूसरी तरफ इसकी खूबसूरती भी एक अलग नजारा पेश करती है.  मेले के मद्देनजर यहां सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम रहता है.

भीम चूल्हा के बगल में स्थित भौराहा पहाड़ी श्रृंखला प्रकृति का अद्भुत नजारा पेश करती है. इस पहाड़ के ऊपर चढ़ने से दूर दूर तक फैली नदी, पहाड़, पठार, गांव की खूबसूरती दिखाई देती है. यहाँ से गढ़वा और बिहार के कई हिस्से भी देखे जा सकते है. इस पहाड़ी के ऊपर से सूर्यास्त और नीचे से सूर्योदय का विहंगम दृश्य दिखाई देता है. पहाड़ को काट कर बनाया गया रेल मार्ग भी देखने लायक है.

भौराहा पहाड़ी श्रृंखला के ऊपर सिंचाई विभाग का शानदार बंगला बना हुआ है. जो देख रेख के अभाव में खंडहर बन गया है. कभी यह बंगला बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव का पसंदीदा जगह हुआ करता था. तब वहां कई वीवीआईपी ठहरते थे. जर्जर हालत में भी यह काफी खूबसूरत दिखता है. आज भी इस खंडहर को अगर संवार दिया जाये तो पर्यटकों के रात्रि विश्राम के लिए एक शानदार जगह साबित हो सकता है. इसके विकास से यहां रोजगार के रास्ते भी खुलेंगे. 

भीम चूल्हा के सामने नदी तट पर किसान कई तरह के खेती करते हैं. जब यहां सरसो के पीले फूल खिलते हैं तो एक बेहतरीन छठा निकलता है. उस समय कई एल्बम की शूटिंग भी की जाती है. इस मनोरम दृश्य की अगर अच्छे से मार्केटिंग की जाये तो यहां फिल्मों की भी शूटिंग की जा सकती है.

तत्कालीन उपायुक्त शशि रंजन के परिकल्पना और निर्देशानुसार भीम चूल्हा परिसर में पर्यटन विकास निधि से पार्क व वॉच टावर बनाये गए हैं. इसके बनने से यहां मनोरंजन के साधन भी बढ़े हैं जो पर्यटन के दृष्टिकोण से बेहतर साबित हुआ है. वॉच टावर एक ऊपर चढ़कर दूर दूर तक के दृश्यों को देखा जा सकता है. यहां से सेल्फी भी बहुत खूबसूरत आती है.

रिपोर्ट- सैकत चटर्जी

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