Table of Contents
- धनबाद के 3 बार सांसद, सिंदरी से 3 बार विधायक रहे
- बांग्लादेश के राजशाही में जन्मे थे एके राय
- केमिकल इंजीनियरिंग करने के बाद नौकरी करने आये थे धनबाद
- एके राय की मजदूर आंदोलन और राजनीतिक शुरुआत
- झामुमो की स्थापना में राय बाबू की थी महत्वपूर्ण भूमिका
- कॉमरेड एके राय का राजनीतिक करियर
- अलग झारखंड आंदोलन में निभायी भूमिका
- राय साहब के साहित्यिक और वैचारिक योगदान
- मार्क्सवाद के साथ-साथ गांधीवाद का समन्वय
- कॉमरेड एके राय का निधन और उनकी विरासत
AK Roy Birth Anniversary: झारखंड की धरती पर एक ऐसे नेता हुए, जिन्हें आज भी उनकी ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा और समाज के प्रति समर्पण के लिए जाना जाता है. इस शख्सीयत का नाम है कॉमरेड एके राय. कॉमरेड एके राय ने सत्ता और सुविधाओं को ठुकराकर जनता के लिए अपनी जिंदगी समर्पित कर दी. कॉमरेड की वैचारिक स्पष्टता, साहस और समर्पण ने उन्हें भारतीय इतिहास में अमर बना दिया.
धनबाद के 3 बार सांसद, सिंदरी से 3 बार विधायक रहे
कोयला नगरी के रूप में विख्यात धनबाद के पूर्व सांसद और सिंदरी के विधायक के रूप में एके राय की पहचान एक ऐसे जननायक की थी, जिन्होंने अपना जीवन मजदूरों और वंचितों के अधिकारों के लिए समर्पित कर दिया. उनकी सादगी, साहस और वैचारिक दृढ़ता ने उन्हें न केवल झारखंड, बल्कि पूरे देश में एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व बनाया.
बांग्लादेश के राजशाही में जन्मे थे एके राय
प्रख्यात मार्क्सवादी चिंतक, मजदूर नेता और झारखंड आंदोलन के प्रमुख स्तंभ कॉमरेड एके राय का जन्म 15 जून 1935 को पूर्वी बंगाल (वर्तमान बांग्लादेश) के राजशाही जिले के सपुरा गांव में एक साधारण परिवार में हुआ. बचपन से ही एके राय सामाजिक अन्याय के प्रति संवेदनशील थे.
केमिकल इंजीनियरिंग करने के बाद नौकरी करने आये थे धनबाद
रासायनिक अभियांत्रिकी (केमिकल इंजीनियरिंग) में डिग्री हासिल करने के बाद एके राय नौकरी करने के लिए धनबाद आ गये. धनबाद के कोयलांचल क्षेत्र में कोयला खदानों में मजदूरों के शोषण और अमानवीय व्यवहार से उनका मन व्यथित हो उठा. यह अनुभव उनके जीवन का टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ. उन्होंने इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़कर मजदूरों के लिए आंदोलन करना शुरू कर दिया.
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एके राय की मजदूर आंदोलन और राजनीतिक शुरुआत
एके राय ने 1960 के दशक में कोयला मजदूरों के अधिकारों के लिए आंदोलन शुरू किया. उनकी अगुवाई में मजदूरों ने बेहतर वेतन, कार्यस्थिति और सामाजिक सुरक्षा की मांग की. उनकी स्पष्टवादिता और संगठन क्षमता ने उन्हें मजदूरों का प्रिय नेता बना दिया. उन्होंने मार्क्सवादी विचारधारा को अपनाया और इसे झारखंड के संदर्भ में लागू करने में जुट गये. 1970 के दशक में वे जयप्रकाश नारायण (जेपी) आंदोलन से भी जुड़े, जो आपातकाल के खिलाफ एक बड़ा जनआंदोलन था.
झामुमो की स्थापना में राय बाबू की थी महत्वपूर्ण भूमिका
कॉमरेड एके राय ने बिनोद बिहारी महतो और शिबू सोरेन जैसे नेताओं के साथ मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. झामुमो का उद्देश्य झारखंड को अलग राज्य का दर्जा दिलाना और आदिवासियों-मूलवासियों के अधिकारों की रक्षा करना था. हालांकि, बाद में वैचारिक मतभेदों के कारण वे झामुमो से अलग हो गये और मार्क्सवादी समन्वय समिति (मासस) नामक राजनीतिक संगठन की स्थापना की.
कॉमरेड एके राय का राजनीतिक करियर
कॉमरेड एके राय ने धनबाद लोकसभा सीट से 3 बार (1977, 1980, और 1989) सांसद बने. सिंदरी विधानसभा सीट से 3 बार विधायक भी चुने गये. उनकी सबसे बड़ी विशेषता थी, उनकी सादगी और जनता के प्रति समर्पण. उन्होंने सांसद और विधायक के रूप में मिलने वाली पेंशन और अन्य सुविधाओं को ठुकरा दिया. उस समय यह अपने आप में एक अनोखा उदाहरण था. वे साइकिल से संसद जाते थे और सामान्य मजदूरों की तरह जीवन जीते थे. उनकी यह जीवनशैली नेताओं के लिए मिसाल बन गयी.
अलग झारखंड आंदोलन में निभायी भूमिका
एके राय ने झारखंड को अलग राज्य बनाने के आंदोलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. उन्होंने आदिवासियों, मजदूरों और वंचित समुदायों के हक की लड़ाई को मजबूती प्रदान की. उनकी रणनीति थी कि आंदोलन न केवल राजनीतिक हो, बल्कि सामाजिक और आर्थिक मुद्दों पर भी केंद्रित हो. उन्होंने कोयलांचल के मजदूरों को संगठित करके खनन माफिया और शोषणकारी नीतियों के खिलाफ आवाज बुलंद की.
राय साहब के साहित्यिक और वैचारिक योगदान
एके राय नेता के साथ-साथ लेखक और चिंतक भी थे. उनकी पुस्तकें ‘योजना और क्रांति’, ‘झारखंड और लालखंड’, ‘बिरसा से लेनिन’, और ‘नयी दलित क्रांति’ मार्क्सवादी विचारधारा और झारखंड आंदोलन के दस्तावेज हैं. उनके लेख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते थे और विदेशों में भी उनकी चर्चा थी. उन्होंने झारखंड की सामाजिक-आर्थिक समस्याओं का वैश्विक संदर्भ में विश्लेषण किया.
मार्क्सवाद के साथ-साथ गांधीवाद का समन्वय
एके राय ने विवाह नहीं किया. पूरा जीवन जनसेवा में समर्पित कर दिया. उनकी सादगी और ईमानदारी की कहानियां आज भी प्रेरणा देती हैं. वे हमेशा मजदूरों के बीच रहते थे और उनकी समस्याओं को अपनी समस्या मानते थे. उनकी विचारधारा में मार्क्सवाद के साथ-साथ गांधीवादी का भी समन्वय दिखता था.
कॉमरेड एके राय का निधन और उनकी विरासत
धनबाद के सेंट्रल अस्पताल में 84 वर्ष की आयु में 21 जुलाई 2019 को कॉमरेड एके राय का निधन हो गया. वे अपने अंतिम दिनों में भी मजदूरों और झारखंड के मुद्दों पर सक्रिय थे. उनके निधन से झारखंड और मजदूर आंदोलन को अपूरणीय क्षति हुई. आज भी उनकी जयंती और पुण्यतिथि पर झारखंड के विभिन्न संगठन उन्हें याद करते हैं. हर पार्टी के नेता समान रूप से उनका आदर करते हैं.
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