बिरसा मुंडा की गिरफ्तारी पर था 500 रुपए का इनाम, 7 गद्दारों ने सेंतरा जंगल से किया था अंग्रेजों के हवाले
Birsa Munda 125th Death Aniversary: 500 रुपए पुरस्कार के लालच में लोगों ने बिरसा मुंडा को धोखा दिया था और उन्हें पकड़ कर अंग्रेजों के हवाले कर दिया था. पश्चिमी सिंहभूम के बंदगांव के सेंतरा जंगल से गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने बिरसा मुंडा को खूंटी होते हुए रांची भेज दिया था. बिरसा के समर्थकों को गिरफ्तार कराने के लिए खूंटी के 33 और तमाड़ में 17 मुंडाओं को पुरस्कार दिए गए थे.
By Guru Swarup Mishra | June 9, 2025 6:06 AM
Birsa Munda 125th Death Aniversary: रांची, प्रवीण मुंडा-धरती आबा बिरसा मुंडा के आंदोलन को कुचलने और उनकी गिरफ्तारी के लिए अंग्रेज सरकार ने पूरा जोर लगा दिया था. मुंडा सरदारों की संपत्ति कुर्क की जा रही थी. इस दबाव के आगे 28 जनवरी 1900 को दो प्रमुख मुंडा सरदारों डोंका और मझिया ने आत्मसमर्पण (सरेंडर) कर दिया. 32 अन्य विद्रोहियों ने भी आत्मसमर्पण कर दिया था. ब्रिटिश सरकार ने बिरसा मुंडा को पकड़ने के लिए पुरस्कार की घोषणा की थी. पुरस्कार के लालच में उनके अपने समुदाय के लोगों ने उनके साथ धोखा किया. कहा जाता है कि बिरसा समर्थकों को गिरफ्तार कराने के लिए खूंटी के 33 और तमाड़ में 17 मुंडाओं को पुरस्कार दिए गए थे. सिंगराई मुंडा नामक व्यक्ति ने उलगुलान के विद्रोहियों की खोज में ब्रिटिश सरकार की मदद की थी. उसने डोंका मुंडा सहित कई लोगों को गिरफ्तार कराया था, तब उसे सौ रुपए का नकद पुरस्कार मिला था. आज बिरसा मुंडा की 125वीं पुण्यतिथि है. इस मौके पर पढ़िए प्रभात खबर की ये खास रिपोर्ट.
दबाव के कारण बिरसा एक जगह नहीं टिक रहे थे
जब अंग्रेज पुलिस का दबाव बढ़ा, तो बिरसा किसी एक जगह पर नहीं टिक रहे थे. वह एक गांव से दूसरे गांव में छिपकर रह रहे थे. कुमार सुरेश सिंह अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि रोगोटो में बिरसा अनुयायियों की आखिरी बैठक हुई थी, जहां बिरसा ने अपने अनुयायियों को दिशानिर्देश दिया था. बिरसा मुंडा अपने अनुयायियों का मनोबल ऊंचा करना चाहते थे.
कुमार सुरेश सिंह लिखते हैं कि ब्रिटिश सरकार ने बिरसा मुंडा की गिरफ्तारी के लिए जो इनाम घोषित किया था, उससे मानमारू और जरीकेल गांव के सात आदमी लोभ में पड़ गए थे और वह बिरसा की खोज में लगे हुए थे. तीन फरवरी 1900 को उन्होंने देखा कि बंदगांव से आगे सेंतरा के पश्चिम स्थित जंगल के काफी भीतर जंगल से धुआं निकल रहा है. वे छिपते हुए उस शिविर के पास पहुंचे और उन्होंने देखा कि वहां पर बिरसा दो तलवारों के साथ बैठे हुए हैं. वहां उनका खाना पक रहा था. जब बिरसा खाना खाकर सो गए, तो उन सातों आदमियों ने बिरसा मुंडा को पकड़ लिया. उन्हें तुरंत बंदगाव में डेरा डाले डिप्टी कमिशनर के हवाले कर दिया गया. बिरसा को पकड़वाने के लिए सातों व्यक्तियों को पांच सौ रुपए का इनाम दिया गया था. बिरसा की गिरफ्तारी की खबर फैलते ही बंदगांव में भीड़ जमा होने लगी थी. फिर यह खबर भी फैली कि बिरसा को छुड़ाने के लिए उनके अनुयायी जिउरी से बंदगांव पहुंचनेवाले हैं. पुलिस ने इन आशंकाओं को देखते हुए बिरसा मुंडा को खूंटी होते हुए रांची भेज दिया.
बिरसा को अपनी आसन्न मृत्यु का आभास हो गया था. उन्होंने अपने अनुयायियों को यह संदेश दिया था ‘जब तक मैं अपनी मिट्टी का यह तन बदल नहीं देता, तुम सब लोग नहीं बच पाओगे. निराश न होना, यह मत सोचना कि मैंने तुम लोगों को मझधार में छोड़ दिया. मैंने तुम्हें सभी हथियार और औजार दे दिये हैं. तुम लोग उनसे अपनी रक्षा कर सकते हो’.
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