रांची. रांची के गुंजल इकिर मुंडा ने जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र कार्यालय में आयोजित आदिवासी अधिकारों के लिए विशेषज्ञ तंत्र (इएमआरआइपी) के 18वें सत्र में एशिया के आदिवासी समूहों का प्रतिनिधित्व किया. यह आयोजन 14 से 18 जुलाई के दौरान हुआ था. इस दौरान गुंजल ने संयुक्त राष्ट्र घोषणापत्र के कार्यान्वयन के तहत आदिवासी पारंपरिक अर्थव्यवस्थाओं, शिक्षा और डाटा अधिकारों पर बात रखी. गुंजल ने अपने वक्तव्य में पारंपरिक आदिवासी अर्थव्यवस्थाओं की मान्यता की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि इन चीजों को शिक्षा व्यवस्था में उचित स्थान मिलना चाहिए. उन्होंने कहा कि स्कूलों में आदिवासी भाषाओं, पारंपरिक ज्ञान और जीवन मूल्यों को शामिल किया जाये. यह भी कहा कि आदिवासी बुद्धिजीवियों को औपचारिक शिक्षकों के रूप में मान्यता दी जाये. गुंजल ने कहा कि आदिवासी समुदायों को अपनी सांस्कृतिक दृष्टिकोणों के आधार पर डाटा प्रणाली विकसित करने में समर्थन मिले. इसके अलावा उन्होंने विस्थापन का मुद्दा उठाते हुए कहा कि सरकारें जमीन अधिग्रहण और विस्थापन से बचाव के लिए सख्त कानूनी सुरक्षा उपाय लागू करे. इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों के अनुरूप नीतियां अपनाने की बात भी कही. गौरतलब है कि गुंजल इकिर मुंडा पद्मश्री स्व डॉ रामदयाल मुंडा के पुत्र हैं. वे दक्षिण-पूर्व एशिया के आदिवासी युवाओं की संस्था से भी जुड़े हैं.
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