गुरुजी गुरु थे. सबके गुरु थे. आगे भी गुरु ही रहेंगे. वह मेरे बड़े भाई की तरह थे. उनसे पारिवारिक संबंध रहा. इसकी शुरुआत 1980 के दशक से हुई. जब मैं बोकारो में पदस्थापित था, तो उनसे परिचय हुआ था. बाद में मेरा पदस्थापन रजरप्पा प्रोजेक्ट में हुआ था. वहां एक गांव के लोग जमीन नहीं देना चाहते थे. उनकी मांग बहुत नहीं थी. रजरप्पा के बगल में ही गुरुजी का गांव था. वह आते थे, तो हमसे मिलते थे. मुलाकात के दौरान ही उनको बताया कि गांव वाले जमीन नहीं देना चाह रहे हैं. गुरुजी बोले कि हम उनसे बात करते हैं. गुरुजी उनके गांव गये. उनसे बात की. गांव वालों ने उन्हें गंभीरता से सुना. गांव वालों की मांग ऐसी थी, जिसे आसानी से पूरा किया जा सकता था. गुरुजी ने गांव वालों को जो भी आश्वासन दिया था, उसे पूरा किया. गांव वालों ने जमीन दे दी. इसके बाद रजरप्पा प्रोजेक्ट चलने लगा. इसके बाद मैं महाप्रबंधक बनकर करगली गयी. वहां भी गुरुजी से नियमित रूप से मेरा संपर्क रहा. स्थिति बदली. मैं सीसीएल का सीएमडी तक बना. लेकिन, उनसे संबंध और प्रगाढ़ होता गया. हेमंत सोरेन जब बीआइटी मेसरा में पढ़ने गये, तो गुरुजी ने मुझे उनसे मिलने कई बार भेजा. उन्होंने कभी गलत करने को नहीं कहा. कभी अपने लिये कुछ नहीं मांगा. जब भी मांगा, तो लोगों के लिए ही मांगा. वह पहले भी गुरु थे, आगे भी गुरु ही रहेंगे. इस संवेदना की घड़ी में हम मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को सबल होने की कामना करते हैं. बी अकला, :लेखक सीसीएल के पूर्व सीएमडी रहे हैं
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