मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व में झामुमो कैसे बनी सबसे बड़ी पार्टी ? साल 2000 तक थी केवल 13 सीटें

Hemant Soren: मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व में झामुमो की ताकत लगातार बढ़ती गयी. आज पार्टी का प्रभाव पूरे झारखंड में देखने को मिलता है. आज हम इस आलेख में झारखंड मुक्ति मोर्चा के राजनीतिक सफर को जानेंगे.

By Sameer Oraon | April 12, 2025 4:16 PM
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रांची : झामुमो का महाअधिवेशन 14 और 15 अप्रैल को होना है. इस मौके पर देश के कई हिस्सों से पार्टी के प्रतिनिधि पहुंचेंगे. इस दौरान पार्टी का संविधान संशोधन भी होगा. साथ ही संगठन का नये सिरे गठन भी होगा. पार्टी के राजनीतिक सफर की तरफ अगर हम नजर डालें तो झारखंड मुक्ति मोर्चा का प्रभाव पूरे राज्य में अप्रत्याशित रूप से बढ़ा है. कभी कुछ इलाकों तक ही सिमटकर रह जाने वाली पार्टी आज झारखंड की सबसे पार्टी है. खासकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने जब से पार्टी की बागडोर अपने हाथ में ली तब से पार्टी न सिर्फ प्रदर्शन सुधरा बल्कि उन इलाकों में भी वर्चस्व स्थापित किया जहां जहां दूर दूर तक झामुमो को कोई नहीं जानता था. झारखंड गठन के बाद से भाजपा इस राज्य की सबसे बड़ी पार्टी रही थी. लेकिन आज झामुमो भाजपा को पछाड़ कर सबसे पार्टी बनी है. इसे सीएम हेमंत सोरेन की नेतृत्व क्षमता का कमाल कहें या फिर शिबू सोरेन की पहचान.

साल 2005 झामुमो के पास मात्र 17 सीटें थीं

बिहार से अलग होकर जब झारखंड बना तो राज्य में एनडीए सरकार बनी. उस वक्त झामुमो के पास महज 13 सीटें थी. बाबूलाल मरांडी को पहला मुख्यमंत्री बनने का गौरव प्राप्त हुआ. झारखंड का अस्तित्व आने के बाद साल 2005 में पहली बार विधानसभा चुनाव हुआ. बीजेपी 30 सीट जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी. उनका मत प्रतिशत 23.6 प्रतिशत था. जबकि झामुमो 17 सीट लाकर दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी.

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2009 में झामुमो को 18 सीटें मिली

फिर साल आया 2009 का. झामुमो का ग्राफ हल्का सा बढ़ा और वह 18 सीट जीतकर भाजपा के साथ संयुक्त रूप से सबसे बड़ी पार्टी बनी. लेकिन वोट प्रतिशत के मामले बीजेपी आगे निकल गयी. उन्हें 20.1 फीसदी वोट मिला तो झामुमो को 15.1 प्रतिशत वोट मिला. इस चुनाव में दूसरे स्थान पर कांग्रेस थी. उन्हें 14 सीटें हासिल हुई थी.

झारखंड में दिखा मोदी लहर का असर

साल 2014 के विधानसभा चुनाव में मोदी लहर का असर झारखंड में भी दिखा. बीजेपी इस चुनाव में 37 सीट लाकर सबसे बड़ी बनी और वह आजसू के साथ मिलकर सरकार बना ली. इस चुनाव में झामुमो की सीट बढ़कर 19 हो गयी. लेकिन वह विपक्ष में थी. हेमंत सोरेन को नेता प्रतिपक्ष चुना गया. इसके बाद पार्टी ने जमीन पर खूब मेहनत की. उस वक्त के तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास के विफलताओं को खूब भुनाया. हेमंत सोरेन खुद एक एक विधानसभा जाकर जनता से मिले. विधानसभा चुनाव से पहले बदलाव यात्रा और संघर्ष यात्रा के जरिये जनता से सीधा संवाद किया. इसका फायदा साल 2019 के चुनाव में देखने मिला. झामुमो 30 सीट जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी और भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया. उनके नेतृत्व का ही कमाल था कि इंडिया गठबंधन 47 सीट जीत ली थी.

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2024 के लोकसभा चुनाव से पहले हेमंत सोरेन की हुई गिरफ्तारी

साल 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले हेमंत सोरेन को गिरफ्तार कर लिया गया. झामुमो और कांग्रेस ने इसे आदिवासी अस्मिता का मुद्दा बनाया. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी खुद मैदान में उतर गयी. नतीजा ये हुआ कि बीजेपी सभी आदिवासी सीटें हार गयी. लेकिन विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी अक्रामक तरीके से चुनाव प्रचार करते हुए परिवर्तन यात्रा निकाली. झामुमो भी पीछे नहीं रहा और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन के नेतृत्व में बीजेपी के हर आरोपों का जवाब दिया. जब रिजल्ट आया तो झामुमो 34 सीट जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी. उनके नेतृत्व में इंडिया गठबंधन प्रचंड बहुमत हासिल किया. नेता प्रतिपक्ष अमर बाउरी समेत बीजेपी के कई दिग्गज नेता चुनाव में हार गये.

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