रस्मों के पीछे होती है वैज्ञानिक पद्धति
आदिवासियों में शादी की रस्म बिल्कुल वैज्ञानिक पद्धति से होती है. शादी के दौरान जुआड़ का इस्तेमाल किया जाता है, जो बैल के कंधे पर लगता है. इसका सांकेतिक संदेश ये होता है कि जिस तरह दो बैल मिलकर साथ-साथ चलते हैं और आर्थिक उत्पादन करते हैं, उसी तरह दोनों दंपति मिलकर घर गृहस्थी को चलायेंगे. इसके अलावा वर-वधू दोनों मसाला पिसने वाले सिलवट में खड़े होकर वचन लेते हैं कि उनका बंधन भी सिलवट की तरह अटूट रहे.
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सिंदूर धोने की रस्म
शादी की अगली सुबह वर-वधू दोनों एक कुएं के पास जाते हैं. यहां पर दूल्हा अपनी दुल्हन के मांग में लगे सिंदूर को पानी से धोता है. हालांकि कुछ जगहों पर अब लोग इस रस्म का पालन नहीं करते हैं. यह रस्म पूरी होने के बाद दूल्हा कुएं से पानी खींचता है और 3 मिट्टी के घड़ों में पानी भरता है. इससे पहले तीनों घड़े और कुएं की पूजा की जाती है. दुल्हन पानी से भरे एक घड़े को सिर पर रखकर और दूल्हा एक बांस से दोनों छोर पर एक-एक घड़ा बांधकर घर की ओर बढ़ता हैं.
भैसुर के साथ होती है खास रस्म
घर पहुंचने पर दुल्हे के पास घड़े में जो पानी होता है उससे पूजा की जाती है. जबकि दुल्हन के सिर पर जो पानी का घड़ा होता है उसे दुल्हे का बड़ा भाई उतारता है. इस दौरान खींचा-तानी में दोनों एक-दूसरे को भिंगोने का प्रयास करते हैं. इस रस्म के बाद ही दुल्हन अपने भैसुर या जेठ से दूरी बनाकर रखती है.
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