कैसे चर्चा आ गये थे जगरनाथ महतो
90 के दशक में जगरनाथ महतो भंडारीदह रिफैक्ट्रीज प्लांट में फायर क्ले की ट्रांसपोर्टिंग में हो रहे घालमेल को उजागर कर चर्चा का केंद्र बन गये थे. उस वक्त दबंग ट्रांसपोर्टरों के इशारे पर उनके साथ मारपीट हुई थी. इसके बाद उन्हें पुलिस ने भी प्रताड़ित किया था. यहां तक कि उन्हें सीसीए एक्ट लगा कर भी जेल भेजने का प्रयास किया गया. उस वक्त गिरिडीह के तत्कालीन सांसद स्व राजकिशोर महतो ने इस मामले पर हस्तक्षेप किया.
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संगठित और असंगठित मजदूरों के आंदोलन में निभाई सक्रिय भूमिका
जगरनाथ महतो हमेशा संगठित और असंगठित मजदूरों सहित विस्थापितों के आंदोलन में सक्रिय रहे. इसका असर ये हुआ कि डुमरी नवाडीह समेत कई क्षेत्रों में उनकी जमीनी मजबूत बन गई. साल 2014 में जब भाजपा की सरकार बनी तो पारा शिक्षक और स्थानीयता के मुद्दे पर रघुवर सरकार को जमकर घेरा. जब हेमंत सोरेन की सरकार बनी तो उन्हें शिक्षा मंत्रालय का जिम्मा मिला. अपने कार्यकाल में उन्होंने पारा शिक्षकों को स्थायी करने समेत ईपीओफओ का लाभ देने समते कई सौगातें दी. पहली बार पारा शिक्षकों के लिए नियमावली भी बनाई गयी.
2004 में थामा था झामुमो का दामन
साल 2004 में जगरनाथ महतो ने डुमरी में आयोजित एक विशाल जनसभा दिशोम गुरु शिबू सोरेन और उनके बड़े दुर्गा सोरेन की उपस्थिति में झामुमो थाम लिया. पार्टी में लगभग 17 सालों के सफर तय करने के बाद हेमंत सरकार में शिक्षा मंत्री बने थे. उनका राजनीतिक जीवन आंदोलनों के कारण संघर्षों से भरा रहा. कई बार जेल जाना पड़ा. अलग राज्य आंदोलन में भी एक दर्जन से अधिक मुकदमे इन पर दर्ज हुए. 1932 की स्थानीय नीति की मांग को लेकर उन्हें जेल की भी हवा खानी पड़ी.
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