30 साल बाद भी पहचान को तरसती नागपुरी फिल्म इंडस्ट्री, फिल्मकारों ने की ये मांग

Jharkhand Film Industry: नागपुरी फिल्म इंडस्ट्री 30-35 साल होने के बाद भी पहचान को तरस रही है. फिल्मकारों का कहना है कि फिल्मों को निर्माण के बाद सिनेमाघरों में प्रदर्शित करना एक बड़ी चुनौती है. झारखंड के लड़खड़ाते फिल्म उद्योग को सहारा देने के लिये फिल्मकारों ने कुछ मांगें की हैं.

By Rupali Das | May 13, 2025 10:56 AM
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Jharkhand Film Industry: झारखंड में फिल्म निर्माण का सिलसिला साल 1958 से शुरू हुआ. उस वक्त बंगाली सिनेमा की अहम कड़ी माने जाने वाले फिल्म निर्देशक ऋत्विक घटक ने अपनी फिल्म अजांत्रिक बनायी थी. यह फिल्म झारखंड के आदिवासी जनजीवन को टटोलती हुई थी, जिसकी शूटिंग रांची, गुमला और आसपास के इलाकों में हुई थी.

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लड़खड़ाती नागपुरी फिल्म इंडस्ट्री

झारखंड की पहली फिल्म “सोना कर नागपुर” है, जिसका निर्माण 1992 में हुआ था. यह फिल्म तब खूब चर्चित हुई थी. इस फिल्म के बाद फिल्म “प्रीत” आयी, जिसके बाद धीरे-धीरे राज्य में नागपुरी फिल्मों का सफर शुरू हो गया. लेकिन अब करीब 30-35 साल बाद भी नागपुरी फिल्म इंडस्ट्री सिनेमा के क्षेत्र में अपनी छाप नहीं छोड़ पायी है. नागपुरी सिनेमा उद्योग अभी भी लड़खड़ा रही है. वर्तमान में यहां काफी कम फिल्मों का प्रोडक्शन हो रहा है. साल 2023 में सिर्फ एक नागपुरी फिल्म आयी नासूर. इसके बाद साल 2024 में भी महज 4-5 फिल्में बनीं. फिलहाल, कई फिल्में रिलीज होने की इंतजार में हैं.

फिल्म प्रदर्शित करने में होती है परेशानी

नागपुरी फिल्म इंडस्ट्री की इस स्थिति को लेकर स्थानीय फिल्ममेकर भी चिंतित हैं. फिल्मकारों का कहना है कि सरकार और समाज के सहयोग के बिना इस इंडस्ट्री का विकास संभव नहीं है. उनकी मांग है कि सिनेमाघरों में प्रतिदिन एक नागपुरी शो दिखानी चाहिये. इस संबंध में नागपुरी फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े पुरुषोत्तम कहते हैं कि आज एक फिल्म बनाने में कम से कम 30 से 35 लाख रुपये खर्च होते हैं और लगभग डेढ़ से दो साल का समय लगता है. लेकिन इतना समय लगाने और खर्च करने के बाद भी इन्हें सिनेमाघरों में प्रदर्शित करने में काफी परेशानी होती है.

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बिना बाजार कैसे पनपेगी फिल्म इंडस्ट्री- पुरुषोत्तम

पुरुषोत्तम ने बताया कि अगर कभी फिल्म सिनेमाघरों में लग भी जाती है, तो बॉलीवुड फिल्मों के दबाव में एक हफ्ते बाद ही इन्हें हटा दिया जाता है. इससे फिल्म की लागत भी नहीं निकल पाती है. उन्होंने कहा कि यदि फिल्मों को बाजार ही नहीं मिलेगा, तो यह इंडस्ट्री कैसे पनपेगी. इसी वजह से झारखंड कलाकार आंदोलन संघर्ष समिति ने पिछले दिनों अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन किया.

सिनेमाघरों में मिले झारखंडी फिल्मों को प्राथमिकता

बता दें कि समिति की ओर से मांग की गयी है कि सिनेमाघरों में झारखंडी फिल्मों को भी प्राथमिकता मिले. हर दिन कम से कम एक शो झारखंडी फिल्मों के लिए आरक्षित होना चाहिए. इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में जिला भवन, प्रखंड सभागार और पंचायत भवनों में भी झारखंडी फिल्में दिखाने की व्यवस्था होनी चाहिये.

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