राजनीतिक अस्थिरता झारखंड के विकास को नहीं दे पाया खाद-पानी
झारखंड निर्माण के साथ ही राजनीतिक अस्थिरता के दौर ने झारखंड के विकास को वह खाद-पानी नहीं दे पाया. गवर्नेंस के मामले में झारखंड पटरी पर नहीं दौड़ पाया. इसके नव निर्माण का विजन सत्ता शीर्ष पर बैठे लोगों के पास नहीं था. कुर्सी गिराओ, कुर्सी बचाओ का खेल बचपन में झारखंड ने देखा. झारखंड को जब सरपट दौड़ना था, तो लड़खड़ाता रहा. झारखंडियों के हर सवाल पीछे छूटते रहे. सत्ता के खेल ने इसको विकास में पीछे धकेल दिया. भ्रष्टाचार के नये-नये अध्याय जुड़ते चले गये.
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झारखंड के भ्रष्टाचार और लूट की चर्चा होती रही
देश-दुनिया में झारखंड के भ्रष्टाचार और लूट की चर्चा होती रही. पलायन, विस्थापन, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, उद्योगों के विकास जैसे कई क्षेत्रों के लिए व्यवस्था में बैठे लोगों ने कभी गंभीरता से नहीं सोचा. अच्छे अस्पताल हम नहीं बना पाये. एजुकेशन का एक्सीलेंस सेंटर नहीं खुले. लाखों बच्चे पढ़ाई के लिए बाहर जाते हैं. छात्राओं और युवाओं के दर्द दरकिनार होते रहे. पिछले 10 वर्षों में राजनीतिक स्थिरता आयी. सरकार चली. इस दौर में आम झारखंडियों के सपनों ने और हिलोरे मारे.
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झारखंड को संवारने का काम नहीं हो पाया पूरा
सरकार से उम्मीद बड़ी थी. सरकारों ने अपना काम कुछ आगे बढ़ाया. लेकिन, झारखंड को संवारने का काम पूरा नहीं हो पाया. स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार के पैमाने पर हम खरे नहीं उतर पाये. आज भी झारखंड बेचैन है. विकास के रास्ते तलाश रहा है. नये प्रतिमान गढ़ने की जरूरत है. फिलहाल झारखंड राजनीतिक सरगर्मी में डूबा है. आने वालेदिनों में नयी सरकार शक्ल लेगी. सरकार जिसकी भी बने, उम्मीदों का दीया जला हुआ है.