Jharkhand HC: झारखंड हाइकोर्ट का बड़ा फैसला, वेतन सुरक्षा से नहीं मिलेगा वरीयता का अधिकार

Jharkhand HC: झारखंड हाईकोर्ट ने वरीयता संबंधी दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए बड़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि वरीयता की गिनती सेवा में वास्तविक प्रवेश की तिथि से होगी. वेतन सुरक्षा से वरीयता का अधिकार नहीं मिलेगा. मामले की सुनवाई जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद और जस्टिस राजेश कुमार की खंडपीठ ने की.

By Rupali Das | July 6, 2025 9:04 AM
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Jharkhand HC | रांची, राणा प्रताप: झारखंड हाइकोर्ट ने वरीयता के मामले में फैसला सुनाते हुए कहा है कि किसी कर्मचारी को दी गयी वेतन सुरक्षा या पूर्व सेवा अवधि की गणना सिर्फ पेंशन संबंधी लाभों के लिए होती है. यह किसी अलग सेवा/कैडर में वरीयता का दावा करने का अधिकार नहीं देती. विशेषकर जब कर्मचारी ने स्वेच्छा से सेवा बदली हो. यह सुनवाई जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद और जस्टिस राजेश कुमार की खंडपीठ में हुई.

कोर्ट ने खारिज की अपील

बता दें कि कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वरीयता की गिनती सेवा में वास्तविक प्रवेश की तिथि से ही होगी. यह किसी रिक्ति की तिथि से या पिछली सेवा से जोड़ कर नहीं दी जा सकती, जब तक सेवा नियमों में ऐसा स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं हो. कोर्ट ने एकल पीठ के आदेश को बरकरार रखते हुए अपील याचिका को खारिज कर दिया.

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खंडपीठ ने क्या कहा

खंडपीठ ने सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का हवाला देते हुए कहा कि सिर्फ वेतन संरक्षण या चयन/विशेष ग्रेड देने के लिए पिछली सेवा की गणना से यह नहीं माना जा सकता कि कर्मचारी पुरानी सेवा का ही हिस्सा बना रहा. वेतन सुरक्षा या पेंशन लाभ के लिए सेवा अवधि गिनना वरीयता से संबंधित नहीं है. क्योंकि इससे अन्य कर्मचारियों की सेवा में हस्तक्षेप नहीं होता, जबकि वरीयता में परिवर्तन अन्य कर्मियों पर प्रभाव डालता है.

प्रार्थियों की दलील पर की टिप्पणी

यह टिप्पणी खंडपीठ ने उन प्रार्थियों की दलील पर दी, जिन्होंने कहा कि यदि उन्हें वेतन सुरक्षा मिली है, तो उनकी पूर्व सेवा अवधि को वरीयता निर्धारण में भी गिना जाना चाहिए. खंडपीठ ने अपना फैसला सुनाते हुए प्रार्थियों की याचिका को खारिज कर दिया. इससे उन्हें बड़ा झटका लगा है.

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क्या है मामला

यह मामला बिनोद कुमार महतो व अन्य बनाम राज्य झारखंड व अन्य से जुड़ा था. इसमें प्रार्थियों ने 2010 में प्रशासनिक सेवा में योगदान दिया था. साल 2012 में पुलिस सेवा में स्वेच्छा से स्थानांतरित हुए थे. उन्होंने अपनी वरीयता 2010 से गिनने की मांग की थी, जिसे खंडपीठ ने खारिज कर दिया.

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