झारखंड हाईकोर्ट ने पैनम कोल माइंस अवैध खनन मामले में वर्द्धमान के एसपी को क्या दिया आदेश?
Jharkhand High Court: झारखंड हाईकोर्ट ने पैनम कोल माइंस के अवैध खनन मामले में कुर्की-जब्ती के आदेश का अनुपालन सुनिश्चित करने को कहा है. हाईकोर्ट ने वर्द्धमान के एसपी को निर्देश दिया है कि कुर्की-जब्ती में झारखंड पुलिस को सहयोग करें. इस मामले की अगली सुनवाई 11 अगस्त को होगी. पैनम कोल माइंस के अवैध खनन मामले की सीबीआई से जांच कराने की मांग को लेकर जनहित याचिका दायर की गयी है.
By Guru Swarup Mishra | August 1, 2025 8:07 PM
Jharkhand High Court: रांची, राणा प्रताप-झारखंड हाईकोर्ट ने पैनम कोल माइंस के अवैध खनन मामले की सीबीआई जांच को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार के शपथ पत्र को देखने के बाद कहा कि 118 करोड़ की वसूली के सर्टिफिकेट केस में दिये गये सर्टिफिकेट ऑफिसर दुमका के कुर्की-जब्ती के आदेश का अनुपालन सुनिश्चित किया जाए. इसके साथ ही खंडपीठ ने पश्चिम बंगाल के वर्द्धमान के एसपी से कहा कि वह कुर्की-जब्ती की कार्रवाई में झारखंड पुलिस को सहयोग करें. मामले की अगली सुनवाई के लिए खंडपीठ ने 11 अगस्त की तिथि निर्धारित की. मामले की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार के अधिकारी कोर्ट के आदेश के आलोक में सशरीर उपस्थित थे.
अधिवक्ता ने दायर की है जनहित याचिका
इससे पूर्व प्रतिवादी पैनम कोल माइंस की ओर से अधिवक्ता लुकेश कुमार ने पैरवी की. प्रार्थी अधिवक्ता राम सुभग सिंह ने जनहित याचिका दायर की है. इसमें उन्होंने कहा है कि वर्ष 2015 में पैनम कोल माइंस नाम की कंपनी को पाकुड़ और दुमका जिले में कोयला खनन का लीज मिला था, लेकिन उस पर यह आरोप है कि उसने लीज से अधिक कोयले का उत्खनन किया है. इससे सरकार को करोड़ों रुपये के राजस्व का नुकसान उठाना पड़ा है. मामले में जांच भी की गयी है, लेकिन उस जांच रिपोर्ट के आधार पर किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं की गयी है. सरकार ने राजस्व की वसूली भी नहीं की है.
पिछली सुनवाई में मिला था दो दिनों का समय
पिछली सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने प्रतिवादियों को कोर्ट द्वारा समय-समय पर पारित विभिन्न आदेशों का पालन करने के लिए दो दिन का समय दिया था. यदि आदेश के अनुसार दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया जाता है, तो जिम्मेवार अधिकारी (प्रतिवादियों) को व्यक्तिगत रूप से सशरीर उपस्थित होकर कारण बताने का निर्देश दिया था कि क्यों नहीं आपके विरुद्ध न्यायालय अवमानना अधिनियम 1971 के अंतर्गत कार्यवाही शुरू की जाए. जानबूझकर एवं स्वेच्छा से इस कोर्ट की अवमानना करने के लिए उन पर मुकदमा क्यों न चलाया जाए और उन्हें दंडित क्यों न किया जाए?
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