रांची (मनोज सिंह). झारखंड न केवल खनिज संसाधनों में समृद्ध है, बल्कि जैव विविधता और औषधीय पौधों के मामले में भी यह राज्य देश में अग्रणी स्थान रखता है. यहां की वनस्पति संपदा में अनेक ऐसी औषधीय प्रजातियां मौजूद हैं, जो परंपरागत ज्ञान और चिकित्सा पद्धति में वर्षों से उपयोग में लायी जाती रही हैं. अब इन्हें वैज्ञानिक आधार और दस्तावेजी स्वरूप देने की दिशा में सार्थक प्रयास हो रहे हैं. झारखंड जैव विविधता बोर्ड ने राज्य के करीब 150 औषधीय पौधों को सूचीबद्ध किया है. इन पौधों के औषधीय गुण, प्रयोग विधि और उनकी उपयोगिता को विशेषज्ञों की मदद से संकलित किया गया है. इस महत्त्वपूर्ण कार्य का नेतृत्व भारतीय वन सेवा की वरिष्ठ अधिकारी और बोर्ड की अध्यक्ष शैलजा सिंह कर रही हैं. श्रीमती सिंह के अनुसार राज्य के पारंपरिक ज्ञान को वैज्ञानिक स्वरूप देना हमारा उद्देश्य है ताकि जनजातीय समुदायों सहित आमजन भी इन औषधीय पौधों का सुरक्षित और प्रभावी उपयोग कर सकें.
कुछ प्रमुख औषधीय पौधों की जानकारी :
गुण : बीज का तेल ह्रदय रोगियों के लिए फायदेमंद है. नेत्र रोग में भी लाभकारी है. इसके पौधों को सुखाकर धुंआ लेने से गले की सूजन मिटती है और आवाज भी साफ होती है.
बाकस (अडूसा) : चार से आठ फीट ऊंचा यह पौधा कफ निस्सारक है, जो फेफड़ों को स्वच्छ करता है और बुखार, पेट की गड़बड़ी और मासिक धर्म संबंधी विकारों में उपयोगी है. पत्ते लंबे और अमरुद के पत्तों के सामान होते हैं. इसका फूल सफेद और लकड़ी मुलायम होती है. इसका काढ़ा अत्यंत प्रभावी माना गया है.
मात्रा : 10 से 20 ग्राम पौधा, फूल, पत्ता जो भी हो, उसे 250 ग्राम पानी में उबाला जाता है. पानी जब आधा हो जाये तो उपयोग किया जाता है.
गुण : यह सूजन को दूर करने वाला शीतल, रक्तपीत नाशक और स्वादिष्ट होता है. ज्यादा नमक खाने से होने वाले रोगों को दूर करता है. इसकी सब्जी कब्ज मिटाती है. बवासीर में लाभदायक होता है.
घृतकुमारी (एलोवेरा) : यह पौधा पाचन तंत्र, त्वचा, यकृत और आंखों के रोगों में उपयोगी है. पत्तों में दोनों तरफ कांटे होते हैं. इसके पत्तों को छिलने से भीतर उजला, लुआवदार गुद्दा निकलता है.
मात्रा : धृतकुमारी को दो बूंद रस, आंखों की लाली, सूजन, दर्द पर पर भी अच्छा फायदा पहुंचाता है.
गुण : यह शीतल गुणकारी पौधा है. यह गर्भाशय के लिए ताकतवर और समस्त अंगों से जहर को निकालने वाली दवा मानी जाती है. इसके साग खाने से पथरी खत्म हो जाते हैं. इसके पत्तों को पानी के साथ पीसकर लेप लगाने से मकड़ी का घाल मिटता है. शहद के साथ खाने से रक्तपीत मिटता है.
गुण : इसके छाल का प्रयोग बुखार में लाभदायक है. इसके छाल के चूर्ण को तीन से पांच ग्राम सूखा कर उपयोग किया जा सकता है.
गुण : पित्त दोष को दूर कर यह शरीर के रंग को निखारता है. चमकदार और गठीला बनाता है. यह अलसर को भी मिटाता है.
बड़ (बरगद) : प्राचीन चिकित्सा परंपरा में पूजनीय यह वृक्ष मधुमेह, खांसी, कब्ज और रक्त शुद्धिकरण में उपयोगी है. इसके जटा का दातुन और दूध का सेवन लाभकारी होता है. यह पुरानी खांसी को ठीक करता है. रक्त को शुद्ध कर रक्त रोगों को मिटाता है. इसके जटा का दातुन दांत के लिए उपयोगी होता है.
मात्रा : दूध की मात्रा 10 से 20 बूंद तक ही उपयोग करना होता है. काढ़े के लिए कोमल पत्ते का चूर्ण एक से दो ग्राम उपयोग करना चाहिए. गिलोय : यह आयुर्वेद की प्रसिद्ध औषधि है. यह अब घर-घर में पायी जाती है. झारखंड में यह प्राकृतिक रूप से उपजता है. इसकी लता बहुत बड़ी और बहुत वर्षों तक जीवित रहने वाला होता है. इसके पत्ते पान के पत्तों के सामान होता है. फूल बारीक पीले रंग का झुमको की तरह खिलता है. फल लाल रंग के होते हैं.
मात्रा : ताजा गिलोय 10 से 20 ग्राम तक पीसकर छानकर पिलाया जा सकता है. इसका काढ़ा भी बनाकर उपयोग किया जा सकता है. यदि सुखाकर चूर्ण बनाना हो तो पांच ग्राम तक दिया जा सकता है.
गुण : यह सभी अंगों-प्रत्यंगों को मजबूती देता है. घाव भरने का काम करता है. पुरानी पेचिस की बीमारी को दूर करता है. पाचन के प्रत्येक अंग-प्रत्यंगों को नवीनता प्रदान करता है. इसके जड़ को पीसकर पिलाने से पीलिया में राहत मिलता है.
गुण : अनिद्रा, बेचैनी, जलन और सुस्ती मिटाता है. इसे बुखार की हालात में दिया सकता है. यह वीर्य वर्द्धक और पौष्टिक है. इसको प्रतिदिन 10 ग्राम तक उपयोग किया जा सकता है.
आदिवासी ज्ञान को वैज्ञानिक आधार
इस पहल का उद्देश्य न केवल औषधीय पौधों का संरक्षण और संवर्धन है, बल्कि पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक चिकित्सा के साथ जोड़कर व्यापक जनहित में प्रस्तुत करना भी है. जैव विविधता बोर्ड का यह प्रयास राज्य को आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा के क्षेत्र में नयी पहचान दिला सकता है. झारखंड औषधीय पौधों की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है. परंपरागत जानकारी को वैज्ञानिक तथ्यों के साथ जोड़कर हम जनहित में एक सशक्त स्रोत विकसित कर रहे हैं.
शैलजा सिंह, अध्यक्ष, झारखंड बायोडायवर्सिटी बोर्ड
विशेष सलाह : इन पौधों का उपयोग करते समय मात्रा, रोग की प्रकृति और व्यक्तिगत शरीर के अनुसार अनुकूलता का ध्यान रखना आवश्यक है. कुछ पौधे (जैसे सर्पगंधा, धतूरा) चिकित्सकीय निगरानी में ही उपयोग करें.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है