छठ महापर्व कभी झारखंड-बिहार का लोक पर्व हुआ करता था. आज यह पूरी दुनिया में पहुंच गया है. छठ महापर्व ने राष्ट्रीय पर्व का रूप ले लिया है. गांव से लेकर शहर और महानगर तक में लोग महापर्व मनाते हैं. झारखंड की राजधानी रांची भी छठ महापर्व के लिए तैयार है. नहाय-खाय के साथ चार दिवसीय इस महापर्व की शुरुआत हो जाती है.
नहाय-खाय के अगले दिन खरना होता है. उस दिन खीर-पूड़ी का प्रसाद बनता है और श्रद्धालुओं में इसका वितरण किया जाता है. खरना के दिन से ही छठ महापर्व के लिए फल-फूल की खरीदारी शुरू हो जाती है. खरना के दिन ही ठेकुआ बनाने के लिए गेहूं पिसवाने का विधान है.
खरना के दिन शाम को छठव्रती सबसे पहले प्रसाद ग्रहण करतीं हैं, इसके बाद अन्य लोगों में प्रसाद का वितरण किया जाता है. इसके साथ ही 36 घंटे का निर्जला व्रत आरंभ हो जाता है. अगले दिन अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. उसके अगले दिन सुबह में उगते भगवान भास्कर को अर्घ्य के साथ छठ महापर्व का समापन होता है.
छठ महापर्व में तरह-तरह के फलों से सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. इसलिए फलों की काफी बिक्री होती है. रांची के धुर्वा स्थित शालीमार बाजार में फलों का बाजार सज गया है. जिनके घरों में छठ पूजा होती है, वे लोग खरीदारी के लिए बाजार पहुंचने लगे हैं.
नारियल एक ऐसा फल है, जिसकी लगभग हर पूजा में जरूरत पड़ती है. छठ में भी नारियल का विशेष महत्व होता है. झारखंड में नारियल की खेती नहीं होती. इसलिए दक्षिण के राज्यों के विशेष तौर से नारियल मंगवाये जाते हैं. इसके बाद यह खुदरा बाजार में पहुंचता है.
छठ में गेहूं से लेकर फल और सूप-दउरा तक सब नया होना चाहिए. इसलिए सूप और दउरा की खरीदारी के लिए भी अभी से छठ करने वाले लोग बाजार आने लगे हैं. खरना और उसके अगले दिन बाजार में इन सामानों की खरीदारी करने वालों की भीड़ उमड़ती है.
छठ पूजा में कई छोटी-छोटी चीजों की भी जरूरत पड़ती है. इसका भी बाजार सज गया है. इसमें माला, सिंदूर औरअन्य चीजें होतीं हैं. हवन की सामग्री भी इन्हीं दुकानों में बिक रहीं हैं.
अलग-अलग जगहों से ईख भी बाजार में पहुंच गए हैं. एक दिन पहले तक ट्रकों से ईख रांची पहुंचे. इसके बाद चारों ओर बाजारों में इसे भेजा गया. छठ के दोनों दिन यानी शाम और सुबह के अर्घ्य के दौरान ईख की जरूरत पड़ती है.
छठव्रतियों को कोई परेशानी न हो, इसके लिए प्रशासन भी अपनी तरफ से पूरी तैयारी कर रहा है. झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने खुद छठ घाटों पर जाकर वहां की साफ-सफाई और व्यवस्था का जायजा लिया. अफसरों को निर्देश दिया कि छठव्रतियों को किसी प्रकार की कठिनाई नहीं होनी चाहिए.
छठ महापर्व में महिला व्रती एक-दूसरे को सिंदूर लगातीं हैं. सिंदूर नाक से लेकर सिर तक लगाया जाता है. इसका अपना महत्व है. नहाय-खाय का दिन हो या खरना का. हर दिन नाक से सिर तक सिंदूर का विधान है. छठव्रती प्रसाद लेने आने वाली महिलाओं को भी ऐसे ही सिंदूर लगातीं हैं. उदीयमान सूर्य को अर्घ्य के साथ छठ महापर्व का समापन होता है. इस वर्ष 19 नवंबर को शाम का अर्घ्य दिया जाएगा, जबकि 20 नवंबर को सुबह के अर्घ्य के साथ महापर्व का समापन होगा.
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