झारखंड: भीड़ की परिभाषा पर गवर्नर असहमत, मॉब लिंचिंग विधेयक राष्ट्रपति को भेजा

सरकार द्वारा भेजे गये मॉब की परिभाषा को संशोधित किये बिना ही स्वीकृति के लिए भेजे गये विधेयक की समीक्षा और उस पर कानूनी राय लेने के बाद राज्यपाल ने इसे राष्ट्रपति के विचारार्थ भेज दिया.

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 10, 2024 6:45 AM
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रांची: राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने मॉब लिंचिंग विधेयक को राष्ट्रपति के पास विचारार्थ भेज दिया है. इससे पहले पूर्व राज्यपाल रमेश बैस ने अनुच्छेद 200 में निहित शक्तियों का प्रयोग करते हुए विधेयक सरकार को लौटा दिया था. राज्यपाल ने विधेयक में मॉब की परिभाषा पर आपत्ति दर्ज करायी थी, लेकिन सरकार ने विधेयक में मॉब की परिभाषा को संशोधित करने से इनकार करते हुए इस राज्यपाल के पास स्वीकृति के लिए भेज दिया था.

सरकार द्वारा भेजे गये मॉब की परिभाषा को संशोधित किये बिना ही स्वीकृति के लिए भेजे गये विधेयक की समीक्षा और उस पर कानूनी राय लेने के बाद राज्यपाल ने इसे राष्ट्रपति के विचारार्थ भेज दिया. विधेयक को संविधान के अनुच्छेद 2001 में निहित प्रावधानों के तहत राष्ट्रपति के पास विचारार्थ भेजे जाने का प्रमुख कारण मॉब की परिभाषा का कानून-सम्मत नहीं होना बताया गया है. सरकार द्वारा स्वीकृति के लिए भेजे गये झारखंड भीड़ हिंसा एवं भीड़ लिंचिंग विधेयक 2021 में दो या दो से अधिक व्यक्तियों के किसी समूह को मॉब या भीड़ के रूप में परिभाषित किया गया है.

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राष्ट्रपति के विचारार्थ भेजे गये विधेयक में यह कहा गया कि देश में लागू भारतीय दंड संहिता में पांच या पांच से अधिक लोगों के उग्र समूह को मॉब या भीड़ के रूप में परिभाषित किया गया है. केंद्र सरकार द्वारा बनायी गयी भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) में भी पांच या पांच से अधिक लोगों के उग्र समूह को मॉब या भीड़ के रूप में परिभाषित किया गया है. इस तरह राज्य विधानसभा से पारित विधेयक में मॉब या भीड़ की परिभाषा कानून-सम्मत नहीं है. ऐसी स्थिति में इस पर राष्ट्रपति द्वारा विचार किया जाना ही बेहतर होगा.

तत्कालीन राज्यपाल रमेश बैस ने सरकार को लौटा दिया था विधेयक

झारखंड सरकार ने मॉब लिंचिंग की घटनाओं को रोकने के लिए एक कानून बनाने का फैसला किया था. कैबिनेट की स्वीकृति के बाद झारखंड भीड़ हिंसा एवं भीड़ लिंचिंग विधेयक 2021 दिसंबर में विधानसभा से पारित किया गया था. विधेयक के पारित होने के बाद इसे राज्यपाल के पास स्वीकृति के लिए भेजा गया था, ताकि इसे कानूनी रूप दिया जा सके. पहली बार भेजे गये इस विधेयक को राज्यपाल ने संविधान के अनुच्छेद 200 में निहित शक्तियों को इस्तेमाल करते हुए संशोधन के लिए वापस कर दिया था. तत्कालीन राज्यपाल रमेश बैस ने विधेयक के दो बिंदुओं पर आपत्ति दर्ज करायी थी.

राज्यपाल ने विधेयक की धारा 2(6) में मॉब या भीड़ की परिभाषा पर आपत्ति दर्ज कराते हुए इसे संशोधित कर कानून के अनुरूप बनाने का सुझाव दिया था. तब राज्यपाल ने विधेयक के हिंदी और अंग्रेजी प्रारूप के अनुवाद में हुई गलतियों को भी सुधारने का सुझाव दिया था. सरकार ने राज्यपाल के सुझाव के आलोक में अनुवाद की गलतियों को सुधारा, लेकिन मॉब या भीड़ की परिभाषा में किसी तरह का बदलाव किये बिना इसे विधानसभा से पारित करा कर राज्यपाल के पास स्वीकृति के लिए भेज दिया था.

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