Jharkhand News: झारखंड जनाधिकार महासभा से जुड़े हजारों लोग आज शुक्रवार को रांची पहुंचे. सभी ने राजभवन के समक्ष धरना प्रदर्शन किया. प्रदर्शन कर रहे लोगों ने राज्य सरकार से लंबित घोषणाओं और चुनावी वादों को पूरा करने की मांग की. इस दौरान एलीना होरो ने कहा कि 2024 विधान सभा चुनाव के दौरान गठबंधन दलों ने जल, जंगल, जमीन, पहचान और स्वशासन सम्बंधित कई वादे किये थे. बीते वर्ष सितम्बर 2024 में भी महासभा ने इन मुद्दों पर धरना दिया था और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मुलाकात भी की थी, लेकिन उन्हीं मुद्दों पर लोग सड़क पर आंदोलन करने को मजबूर है.
झारखंडी हित के विपरीत फैसले ले रही सरकार
आलोका कुजूर ने कहा कि चुनाव में आदिवासी-मूल वासियों ने फासीवादी, सांप्रदायिक और झारखंड विरोधी भाजपा के विरुद्ध इस अपेक्षा के साथ गठबंधन सरकार को चुना था कि जन मुद्दों पर कार्रवाई होगी. लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है. बल्कि कई मामलों में सरकार ने झारखंडी हित के विपरीत फैसले लिए है. डेमका सोय ने कहा कि रघुवर सरकार ने राज्य के 22 लाख एकड़ गैर-मजरुआ और सामुदायिक जमीन को लैंड बैंक में डाल दिया था और भूमि अधिग्रहण कानून में 2017 में संशोधन कर जबरन अधिग्रहण का दरवाजा खोल दिया था. लेकिन बार-बार वादा करने के बावजूद गठबंधन सरकार ने आज तक इसे रद्द नहीं किया.
ईचा-खड़कई डैम निर्माण से सैंकड़ों आदिवासी परिवार होंगे विस्थापित
बासिंग हेस्सा ने कहा कि ‘पेसा’ लागू करने के प्रति हेमंत सोरेन सरकार की उदासीनता से साफ झलकता है कि सरकार आदिवासी-मूलवासियों के लिए ‘अबुआ राज’ की स्थापना नहीं चाहती है. श्यामल मार्डी बोले कि चांडिल बांध की नीलामी बाहरी लोगों को कर दी गयी है. पश्चिमी सिंहभूम के ईचा-खड़काई बांध विरोधी संघ से जुड़े रेयांस समद ने कहा कि झामुमो हर चुनाव में बोलती है कि ईचा-खड़कई डैम नहीं बनेगा लेकिन हाल के टीएसी में इसे बनाने का निर्णय ले लिया गया. इससे सैंकड़ों आदिवासी परिवार विस्थापित होंगे.
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अडानी के पक्ष में खड़ी है सरकार
लातेहार-पलामू से आये कई लोगों ने वन अधिकार कानून के तहत निजी और सामुदायिक पट्टा न मिलने के तथ्य दिये, जिससे सरकार की ‘अबुआ बीर दिशुम’ अभियान के खोकलेपन को उजागर किया. नंदकिशोर गंझू ने कहा कि व्यापक कटौती के साथ निजी पट्टा दिया जा रहा है. सामुदायिक वन अधिकार तो मिल ही नहीं रहा है. बीरेन्द्र भगत ने कहा कि हेमंत सोरेन सरकार जब से चुनाव जीती है, कभी अडानी के साथ मिल रही है तो कभी विदेश जाकर झारखंड की जमीन को बेचने का कार्यक्रम बना रही है. मिथिलेश दांगी ने कहा अडानी के लिए प्रस्तावित गोंडुलपुरा कोयला खदान के विरुद्ध ग्रामीण 25 महीनों से संघर्ष कर रहे हैं लेकिन सरकार अडानी के पक्ष में खड़ी है.
विचाराधीन कैदियों की रिहाई की मांग
हेलन सुंडी ने कहा कि इस सरकार में भी आदिवासी-दलितों के लिए फर्जी मामले और सालों तक जेल में विचाराधीन बन के बंद रहना जारी है. राज्य में 14500 कैदियों में लगभग 80% विचाराधीन हैं. राज्य के 50% जेल में क्षमता से अधिक कैदी हैं. गठबंधन दलों ने घोषणा पत्र में वादा किया था कि लंबे समय से जेल में बंद विचाराधीन कैदियों को रिहा किया जायेगा और फर्जी मामलों के लिए न्यायिक आयोग का गठन होगा लेकिन चुनाव जीतने के बाद इस पर चुप्पी है.
जाति प्रमाण पत्र बनवाना एक बड़ा संघर्ष
कई वक्ताओं ने कहा कि हेमंत सरकार ‘अबुआ सरकार’ होने का दावा करती है, लेकिन झारखंडी हितों के विपरीत काम कर रही है. सोमय मार्डी ने कहा 2016 में रघुवर सरकार ने झारखंड-विरोधी स्थानीय नीति बनायी थी. गठबंधन सरकार 6 साल में भी इसे रद्द कर आदिवासी-मूलवासियों के हितों की सुरक्षा करने के लिए उपयुक्त स्थानीय व नियोजन नीति नहीं बनायी. सफाई कर्मचारी आंदोलन से जुड़े धर्म वाल्मीकि ने बताया कि दलितों के लिए महज जाति प्रमाण पत्र बनवाना एक संघर्ष है. अनेक दलित युवा प्रमाण पत्र न बनने के कारण पढ़ाई व रोजगार से वंचित हो रहे हैं. हालांकि राज्य सरकार ने भूमिहीन परिवारों के जाति प्रमाण पत्र के लिए एक प्रक्रिया बनाकर रखी है, लेकिन वो इतनी जटिल है कि प्रमाण पत्र मिलना ही बहुत मुश्किल है.
मॉब लिंचिंग के विरुद्ध कानून बनाने की मांग
धरने में लोगों ने आदिवासी-दलित बच्चों में व्यापक कुपोषण के मुद्दे को भी उठाया. रश्मि यादव ने कहा कि अनगिनत बार घोषणा के बावजूद मध्याह्न भोजन और आंगनबाड़ी में बच्चों को रोज अंडे नहीं मिल रहे हैं. यूनाइटेड मिली फोरम के अफजल अनीस ने कहा कि भाजपा सरकार के कार्यकाल में राज्य में एक के बाद एक धर्म के नाम पर लिंचिंग हो रही थी. गठबंधन दलों ने कई बार मॉब लिंचिंग के विरुद्ध कानून बनाने का वादा भी किया था लेकिन आज तक यह अपूर्ण है.
मुख्यमंत्री के नाम मांग पत्र
धरने के अंत में झारखंड जनाधिकार महासभा ने अपनी मांगों के साथ मुख्यमंत्री के नाम मांग पत्र दिया. जिसमें कई मांगों को सरकार के समक्ष रखा गया.
- भूमि अधिग्रहण संशोधन कानून (2017) और लैंड बैंक नीति तुरंत रद्द हो. विस्थापन एवं पुनर्वास आयोग का गठन कर सक्रिय किया जाये.
- पेसा कानून को पूर्णतः लागू किया जाए.
- सभी निजी व सामुदायिक वन अधिकार दावों और सामुदायिक वन संसाधनों पर अधिकार दावों पर बिना कटौती तुरंत पट्टा दिया जाये.
- भूमिहीन दलितों को तुरंत जाति प्रमाण पत्र व भूमि पट्टा का आवंटन किया जाये.
- ‘झारखंड पर आदिवासी-मूलवासियों का पहला अधिकार’ – इसके आधार पर स्थानीयता और नियोजन नीति बनायी जाये.
- लम्बे समय से विचाराधीन कैदियों को रिहा किया जाये और फर्जी मामलो को रद्द किया जाये.
- मॉब लिंचिंग के विरुद्ध विशेष कानून बनायी जाये.
- आंगनबाड़ियों और मध्याह्न भोजन में रोज अंडे दिए जाये.
धरना प्रदर्शन में ये रहें मौजूद
धरने का संचालन रिया तूलिका पिंगुआ और दिनेश मुर्मू ने किया. धरने में अंगद महतो, अजय उरांव, अलोका कुजूर, अनिल हंसदा, अमीनता उरांव, बिरेंद्र भगत, बैजनाथ मुर्मू, बीर सिंह बिरुली, चार्ल्स मुर्मू, देमका सोय, धरम वाल्मीकि, एलीना होरो, कौशल्या हेम्ब्रम, हेलेन सुंडी, जेम्स कुल्लू, जयपाल सरदार, मिथिलेश दांगी, मीना मुर्मू, नंद किशोर गंझू, रश्मी, रेणु उरांव, रियांस समद, रोज़ मधु तिर्की, श्यामल मार्डी, सोमय मार्डी, सिसौल सोरेन, सुशांत सोरेन, सोमवार मार्डी, सेलेस्टीन लकड़ा, सुरेंद्र उरांव, सोना हंसदा, सिराज दत्ता, संजय यादव, टॉम कावला समेत कई लोगों ने अपनी बात रखी.
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