झारखंड में डीजीपी के मुद्दे पर राजनीति गरमायी, बाबूलाल मरांडी और विनोद पांडेय में वार-पलटवार

Jharkhand Politics: झारखंड में डीजीपी के मुद्दे पर झारखंड मुक्ति मोर्चा और मुख्य विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी में तीखे बयानों का दौर शुरू हो गया है. बाबूलाल मरांडी ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का नाम लेकर उन पर हमला बोला, तो पलटवार का जिम्मा झामुमो प्रवक्ता विनोद पांडेय ने संभाला. विनोद पांडेय ने कहा कि बाबूलाल मरांडी झारखंड की राजनीति में प्रासंगिकता बचाने के लिए सरकार पर बेबुनियाद आरोप लगा रहे हैं. दोनों नेताओं ने एक-दूसरे पर क्या-क्या आरोप-प्रत्यारोप लगाये हैं, यहां पढ़ें.

By Mithilesh Jha | May 11, 2025 8:53 PM
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Jharkhand Politics: झारखंड के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) के मुद्दे पर झारखंड की सत्ताधारी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) और मुख्य विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच तीखे बयानों का दौर शुरू हो गया है. भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सह नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का नाम लेकर उन पर जोरदार हमला बोला है. वहीं, जवाब में झामुमो के महासचिव सह प्रवक्ता विनोद पांडेय ने बाबूलाल मरांडी को निशाने पर लिया है.

झारखंड देश का पहला राज्य, जहां डीजीपी का पद 10 दिन से खाली – बाबूलाल मरांडी

भाजपा नेता बाबूलाल मरांडी ने कहा है कि झारखंड देश का पहला राज्य बन गया है, जहां 10 दिन से डीजीपी का पद खाली है. उन्होंने कहा, ‘जो ‘डीजीपी’ के पद पर काम कर रहा है, वह बिना वेतन के सेवा दे रहा है! वाह मुख्यमंत्री जी, ये तो नया भारत निर्माण है – बिना वेतन, बिना संवैधानिक वैधता, सिर्फ भ्रष्टाचार के दम पर प्रशासन!’

बाबूलाल मरांडी के बयान पर विनोद पांडेय की तीखी प्रतिक्रिया

बाबूलाल मरांडी के बयान पर झामुमो नेता विनोद पांडेय ने तीखी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा है कि बाबूलाल मरांडी अब झारखंड की राजनीति में अपनी प्रासंगिकता बचाने के लिए सरकार पर बेबुनियाद आरोप लगा रहे हैं. उन्होंने कहा कि डीजीपी के मुद्दे पर हेमंत सोरेन सरकार पर सवाल उठाने से पहले उन्हें अपनी पार्टी के अंदर झांककर देख लेना चाहिए.

बाबूलाल मरांडी का बयान हास्यास्पद – विनोद पांडेय

झामुमो प्रवक्ता ने कहा कि झारखंड में आज जिन मुद्दों पर बाबूलाल मरांडी शोर मचा रहे हैं, वे उन्हीं के शासनकाल की देन हैं. तब के भ्रष्टाचार और नौकरशाही के खेल ने ही आज प्रशासनिक व्यवस्था को इस स्थिति में ला खड़ा किया है. झामुमो प्रवक्ता ने कहा कि यह बयान हास्यास्पद है. उन्होंने कहा, ‘क्या बाबूलाल जी खुद को इतना हताश और भ्रमित मान चुके हैं कि अब बिना किसी आधार के ऐसी बातें कह रहे हैं? अगर उनके पास कोई ठोस प्रमाण है, तो सामने लाएं. वरना, झूठ बोलकर जनता को गुमराह करना बंद करें.’

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‘मरांडी जी बतायें, अपने शासनकाल में कितनी बार किया सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन?’

विनोद पांडेय ने कहा कि संविधान और सुप्रीम कोर्ट का हवाला देने से पहले मरांडी जी ये भी बताएं कि उन्होंने अपने शासनकाल में कितनी बार सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन किया था. पांडेय ने कहा कि बाबूलाल मरांडी ने कितने संवैधानिक पदों को अपने राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल किया था, उसका जवाब दें.

अब क्यों न एक नयी नीति ही बना दी जाए? – बाबूलाल मरांडी

उधर, बाबूलाल मरांडी ने कहा कि धनबाद, हज़ारीबाग, रामगढ़, बोकारो जैसे कोयला वाले ‘कमाऊ’ इलाकों समेत और बाकी के खनिज इलाकों में भी ‘बिना वेतन, केवल कमीशन आधारित सेवा’ के लिए ‘रिटायर्ड और अनुभवी’ लोगों से आवेदन मंगवाइये.’ उन्होंने कहा कि जो काम डीजीपी साहब कर रहे हैं, वही मॉडल लागू कीजिए, जहां वेतन की जगह ‘वसूली’ हो और संविधान की जगह ‘किचन कैबिनेट’ के आदेश मान्य हों.

हेमंत सोरेन खुद को सुप्रीम कोर्ट से ऊपर मान बैठे हैं – मरांडी

नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि झारखंड सरकार ने न केवल संविधान के अनुच्छेद 312 को नकारा है, जो UPSC को अधिकार देता है, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के प्रकाश सिंह केस के निर्देशों को भी रद्दी की टोकरी में डाल दिया है. हेमंत सोरेन अब शायद खुद को सर्वोच्च न्यायालय से भी ऊपर मान बैठे हैं और प्रशासन को नीचे, बहुत नीचे गिरा दिया है.

हेमंत जी, आपने तो क्रांतिकारी प्रयोग कर डाला – बाबूलाल मरांडी

बाबूलाल मरांडी ने कहा कि आज झारखंड वहां पहुंच चुका है, जहां JPSC की हर कुर्सी बिक रही है. UPSC से चयनित अधिकारियों को भी ‘रेट लिस्ट’ से होकर गुजरना पड़ता है. उन्होंने कहा, ‘हेमंत जी, आपने तो एक क्रांतिकारी प्रयोग कर डाला – ‘योग्यता नहीं, सुविधा शुल्क आधारित प्रशासन’

नयी परंपरा प्रशासनिक ढांचे के ताबूत में आखिरी कील साबित होगी – मरांडी

भाजपा नेता ने कहा, ‘जो परंपरा आपने शुरू की है, वो न सिर्फ सरकारी व्यवस्था की विश्वसनीयता का अंतिम संस्कार कर रही है, बल्कि आने वाले वर्षों में झारखंड के प्रशासनिक ढांचे के ताबूत में आखिरी कील साबित होगी.’

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