झारखंड के ग्रामीण बनेंगे लखपति, पर्यावरण का भी होगा संरक्षण, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की इस शानदार योजना से एक पंथ दो काज
Kitchen Garden: झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने जीरो कार्बन एक्शन इनिशिएटिव के तहत एक योजना शुरू की है. इसके तहत औद्योगिक इकाइयां ग्रामीणों के घर के किचन-गार्डन में सागवान के पौधे लगवा सकती हैं. इससे न सिर्फ पर्यावरण संरक्षण होगा, बल्कि ग्रामीण लखपति भी बन जाएंगे.
By Guru Swarup Mishra | March 3, 2025 6:05 AM
Kitchen Garden: रांची, मनोज सिंह-झारखंड में औद्योगिक इकाइयां अब किसी भी ग्रामीण के किचन-गार्डन में सागवान के पौधे लगवा सकती हैं. पौधे की देखरेख की जिम्मेदारी ग्रामीण की होगी. तकनीकी सहायता कंपनीवाले देंगे. पेड़ तैयार होने के बाद उसका आर्थिक लाभ ग्रामीणों को मिलेगा. 20 साल में पेड़ तैयार हो जाता है और उसकी कीमत करीब एक लाख रुपए हो जाएगी. पेड़ से होने वाले कार्बन क्रेडिट का लाभ उद्योग को मिलेगा. यह काम झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जीरो कार्बन एक्शन इनिशिएटिव के तहत कर रहा है. यह योजना अगले वित्तीय वर्ष में शुरू हो जायेगी. योजना की जानकारी औद्योगिक इकाइयों को दी गयी है. उनको इसके पूरे फॉरमेट के बारे में बताया गया है. इसके लिए औद्योगिक इकाइयों को ग्रामीणों के साथ एग्रीमेंट करना होगा. बोर्ड ने एग्रीमेंट का फॉरमेट भी तैयार कर लिया है.
20 साल में एक लाख का हो जाता है पेड़
सागवान का पौधा 20 साल में करीब 35 सीएफटी लकड़ी के लायक हो जाता है. वर्तमान में एक सीएफटी सागवान के लकड़ी की बाजार कीमत तीन हजार रुपये के आसपास है. 20 साल में इसकी कीमत वर्तमान दर से एक लाख रुपये के आसपास हो जायेगी. इससे करीब 100 किलो कार्बन क्रेडिट का लाभ औद्योगिक इकाइयों को मिलेगा. सभी पौधे की जियो टैगिंग करायी जायेगी. इससे प्रदूषण बोर्ड को सही जानकारी मिल पायेगी.
एग्रीमेंट में बच्चों का नाम भी देना होगा
फॉरमेट में तय किया गया है कि एग्रीमेंट के समय बच्चों का नाम भी देना होगा. घर का मालिक के नहीं रहने की स्थिति में पेड़ में किसकी हिस्सेदारी होगी, यह एग्रीमेंट में ही रखना होगा. बोर्ड का मानना है कि पेड़ तैयार होने पर घर में विवाद भी हो सकता है. इस कारण एग्रीमेंट में ही सबकुछ स्पष्ट होना चाहिए.
कम खर्च में लगाएं सागवान
झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष शशिकर सामंता ने कहा कि सागवान तेजी से बढ़नेवाला पौधा होता है. इसको बचाने का खर्च भी बहुत नहीं होता है. इसको ग्रामीण आसानी से तैयार कर सकते हैं. औद्योगिक इकाइयों को ग्रामीणों को समझाकर यह काम करना है. इससे पर्यावरण संरक्षण का काम भी होगा. समाज के साथ-साथ उद्योग भी कार्बन क्रेडिट का लाभ उठा सकते हैं.
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