रांची. मिथिला संस्कृति में आस्था और परंपरा का प्रतीक मधुश्रावणी पर्व मंगलवार से आरंभ हो गया. यह पर्व हर वर्ष सावन के कृष्ण पक्ष की पंचमी से प्रारंभ होता है और शुक्ल पक्ष की तृतीया को संपन्न होता है. यह विशेष रूप से नवविवाहिताओं द्वारा अपने वैवाहिक जीवन की मंगलकामना के लिए मनाया जाता है. पर्व के दौरान नवविवाहिता बेटियां अपने मायके आती हैं और 13 से 15 दिनों तक रहकर धार्मिक विधियों का पालन करती हैं. प्रतिदिन वे फूल-पत्ते तोड़ने (लोढ़ने) जाती हैं और अगले दिन उन्हीं बासी फूल-पत्तियों से पूजन करती हैं. इसके पश्चात मां विषहरी व अन्य देवी-देवताओं की पूजा कर पति की दीर्घायु व परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं. हर दिन पूजा के साथ-साथ विविध कथाएं भी सुनी जाती हैं, जो नवविवाहिताओं को गृहस्थ जीवन की मर्यादा, निष्ठा और समर्पण की शिक्षा देती हैं. प्रतिदिन संध्या के समय लोक गीतों के माध्यम से आराधना की जाती है, जिससे पूरे वातावरण में एक सांस्कृतिक सौंदर्य और आध्यात्मिकता का संचार होता है. झारखंड मिथिला मंच जानकी प्रकोष्ठ की महासचिव निशा झा ने बताया कि संस्था द्वारा आगामी 20 जुलाई की दोपहर दो बजे, लेकव्यू गार्डन, अरगोड़ा में मधुश्रावणी महोत्सव का आयोजन किया जायेगा. कार्यक्रम में नवविवाहिताएं पारंपरिक ‘डाला’ सजाकर भाग लेंगी. इस अवसर पर ‘डाला सज्जा प्रतियोगिता’ की जायेगी.
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