रिम्स के रेफरल सेंटर में भेजने का निर्देश
राज्य के मेडिकल कॉलेजों और जिला अस्पतालों को स्पष्ट निर्देश है कि उनके यहां आनेवाले कुपोषित बच्चों को इलाज के लिए रिम्स के रेफरल सेंटर में भेजना है, लेकिन विभागीय स्तर पर निगरानी और सख्ती नहीं होने के कारण कुपोषित बच्चों को यहां नहीं भेजा जा रहा है. रिम्स के शिशु ओपीडी में एक नर्स तैनात की गयी, जो परिजनों को प्रोत्साहित कर कुपोषित बच्चों को उपचार के लिए सेंटर में लाती है. इधर, कुपोषण उपचार केंद्र में मैनपावर की भी कमी है. एक समय था, जब न्यूट्रिशन, काउंसलर, रसोइया, वार्ड ब्वॉय और अन्य कर्मचारियों की कमी के कारण बच्चों के लिए पोषण युक्त भोजन की व्यवस्था करने में परेशानी होने लगी थी, जिसकी वजह से यहां बच्चों को भर्ती करना बंद कर दिया गया था. लेकिन, फिलहाल यह सेंटर संचालित है. कुपोषित बच्चों के इलाज का जिम्मा शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ दिव्या सिंह संभाल रही हैं. उनका कहना है कि कुपोषित बच्चे इलाज के लिए नहीं पहुंचते हैं, जबकि सेंटर में सभी व्यवस्थाएं और सुविधाएं उपलब्ध हैं.
झारखंड में कुपोषण की स्थिति
एनएफएचएस-5 के मुताबिक, झारखंड में पांच साल से कम उम्र के 39.6%(आयु के अनुसार लंबाई) बच्चे बौने हैं. इसमें शहरी क्षेत्र में 26.8% और ग्रामीण इलाकों में 42.3% बच्चे शामिल हैं. वहीं, पांच वर्ष से कम आयु के कमजोर बच्चों(ऊंचाई के अनुसार वजन) की संख्या 22.4% है. जबकि, अति गंभीर रूप से कमजोर बच्चों की संख्या 9.1% है. इसके अलावा 6-59 महीने के एनीमिया से पीड़ित बच्चों की संख्या 67.5% है. वहीं, एक साल से कम उम्र के 39% बच्चे उम्र के हिसाब से कम वजन के हैं. हालांकि, एनएफएचएस-4 के मुताबिक, राज्य की स्थिति बेहतर हुए है, लेकिन अब भी सुधार की जरूरत है.
शिशु शक्ति खाद्य पैकेट का हो रहा वितरण
झारखंड सरकार ने कुपोषण को खत्म करने के लिए इसी साल 18 जनवरी से ‘शिशु शक्ति खाद्य पैकेट’ का वितरण शुरू किया है. इस पैकेट में सरकार द्वारा वर्तमान में उपलब्ध कराये जा रहे राशन की तुलना में ज्यादा ऊर्जा, प्रोटीन और सूक्ष्म पोषक तत्वों से भरपूर है. इसकी शुरुआत पश्चिमी सिंहभूम जिले के चक्रधरपुर प्रखंड से पायलट प्रोजेक्ट के तहत की गयी है.
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