झारखंड लिटरेरी मीट : ‘राग दरबारी के पचपन साल पर क्या बोलीं ममता कालिया…
झारखंड लिटरेरी मीट के तीसरे दिन श्रीलाल शुक्ल की प्रसिद्ध रचना 'राग दरबारी: पचपन साल के बाद' पुस्तक पर प्रभात खबर के काॅरपोरेट एडिटर विनय भूषण ने मशहूर साहित्यकार ममता कालिया से विशेष बातचीत की.
By Guru Swarup Mishra | December 11, 2023 11:20 AM
रांची: झारखंड की राजधानी रांची के ऑड्रे हाउस सभागार में टाटा स्टील झारखंड लिटरेरी मीट का आयोजन प्रभात खबर के सहयोग से किया जा रहा है. रविवार को प्रसिद्ध साहित्यकार ममता कालिया दूसरी बार इस कार्यक्रम से जुड़ीं. झारखंड लिटरेरी मीट के तीसरे दिन श्रीलाल शुक्ल की प्रसिद्ध रचना ‘राग दरबारी: पचपन साल के बाद’ पुस्तक पर चर्चा की गयी. प्रभात खबर के काॅरपोरेट एडिटर विनय भूषण ने मशहूर साहित्यकार ममता कालिया से विशेष बातचीत की. इस दौरान चर्चा में इस पुस्तक का अंग्रेजी में अनुवाद करने वाली प्रसिद्ध अनुवादक जिलियन राइट भी ऑनलाइन जुड़ीं.
व्यंग्य आज भी हैं शाश्वत
प्रसिद्ध साहित्यकार ममता कालिया ने विशेष बातचीत में कहा कि पुस्तक ‘राग दरबारी: पचपन साल के बाद’ इसलिए आज भी उतनी ही ताजा है और चर्चा का विषय है क्योंकि इसमें लिखा व्यंग्य आज भी शाश्वत है. इसमें शिक्षा विभाग की धांधली को बखूबी दिखाया गया है. उन्होंने शिवपालगंज गांव को सिर्फ गांव के तौर पर नहीं बल्कि एक चरित्र के तौर पर दर्शाया गया है. कहानी में कई पात्रों से अधिक व्यंग्य की उम्मीद नहीं थी. इसलिए गांव को ही एक चरित्र के तौर पर दर्शाया गया है.
अंग्रेजी अनुवादक जिलियन राइट भी चर्चा में ऑनलाइन जुड़ीं
पुस्तक ‘राग दरबारी: पचपन साल के बाद’ की अंग्रेजी अनुवादक जिलियन राइट भी चर्चा में ऑनलाइन जुड़ीं. एक सवाल का जवाब देते हुए जिलियन कहती हैं कि इतेफाक से मेरी नज़र राग दरबारी पर पड़ी थी. मैंने जब इसे पढ़ा तो लगा ऐसी कोई किताब तो अंग्रेजी में है ही नहीं. मैंने अनुवाद के लिए पेंगुइन इंडिया के पास गई. श्री लाल शुक्ल से बात की. उन्होंने भी कोई आपत्ति नहीं जताई. वह कहती हैं कि यह किताब शिक्षा जगत में धांधली को उजागर करती है. इसकी पूछ बाहर में भी लोगों तक होती रही.
कहानी में समस्याओं को व्यंग्य के तौर पर किया गया है पेश
पुस्तक ‘राग दरबारी: पचपन साल के बाद’ किस मायने में खास है? इस पर जवाब देते हुए ममता कालिया कहती हैं कि इस कहानी में समस्याओं को व्यंग्य के तौर पर पेश किया गया है. लेखक ने समाधान पर कोई बात नहीं की है. गांव को, वहां के लोगों के चरित्र को बस आईने में पेश किया गया है. इसलिए भी यह कई मायने में खास है. पुस्तक में मौजूद छंगामल कॉलेज आज भी है. वैद्य जी जैसे लोग आज भी हैं. ये कहानी कभी पुरानी नहीं हो सकती.