मनोज महतो हत्याकांड : झारखंड हाईकोर्ट ने नक्सली जेठा कच्छप और सनातन की आजीवन कारावास की सजा किया निरस्त

खूंटी की निचली अदालत ने मनोज महतो हत्या मामले में दोषी पाने के बाद सात मई 2022 को जेठा कच्छप और सनातन स्वांसी को आजीवन कारावास की सजा सुनायी थी.

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 4, 2024 8:39 AM
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रांची : झारखंड हाइकोर्ट ने खूंटी के मनोज महतो हत्याकांड मामले में सजायाफ्ता पीएलएफआइ के जोनल कमांडर जेठा कच्छप व एक अन्य सनातन स्वांसी की ओर से दायर क्रिमिनल अपील याचिका पर फैसला सुनाया. जस्टिस रंगन मुखोपाध्याय व जस्टिस प्रदीप कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ ने प्रार्थियों की क्रिमिनल अपील को स्वीकार कर लिया. साथ ही खूंटी की निचली अदालत द्वारा सुनायी गयी आजीवन कारावास की सजा को निरस्त कर दिया. पूर्व में मामले की सुनवाई पूरी होने के बाद खंडपीठ ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. सुनवाई के दाैरान राज्य सरकार की ओर से खंडपीठ को बताया गया था कि जेठा कच्छप के खिलाफ कई गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं. वह प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन पीएलएफआइ का प्रमुख सदस्य है. निचली अदालत द्वारा दी गयी आजीवन कारावास की सजा उचित है.

प्रार्थी ने खुद को बताया निर्दोष

वहीं प्रार्थी की ओर से मामले में खुद को निर्दोष बताते हुए कहा गया कि उसके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं है. उन्हें पुलिस द्वारा फंसाया गया है. उल्लेखनीय है खूंटी की निचली अदालत ने मनोज महतो हत्या मामले में दोषी पाने के बाद सात मई 2022 को जेठा कच्छप व सनातन स्वांसी को आजीवन कारावास की सजा सुनायी थी. मनोज महतो की हत्या आठ अक्तूबर 2011 को खूंटी बाजार में कर दी गयी थी. घटना को लेकर कांड संख्या-64/2011 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गयी थी.

श्रीलेदर्स के मालिक आशीष डे की हत्या के तीन सजायाफ्ताओं की सजा निरस्त

झारखंड हाइकोर्ट ने जमशेदपुर के बहुचर्चित श्रीलेदर्स के मालिक आशीष डे की हत्या मामले में सजायाफ्ताओं की ओर से दायर क्रिमिनल अपील याचिका पर अपना फैसला सुनाया. जस्टिस आनंद सेन व जस्टिस गौतम कुमार चौधरी की खंडपीठ ने सजायाफ्ता जितेंद्र कुमार सिंह, विनोद सिंह व अमलेश कुमार सिंह को राहत देते हुए उनको दी गयी आजीवन कारावास की सजा को निरस्त कर दिया. खंडपीठ ने पूर्व में 13 अगस्त को मामले की सुनवाई के दौरान प्रार्थी व राज्य सरकार का पक्ष सुना था. सुनवाई पूरी होने के बाद जस्टिस आनंद सेन की खंडपीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया था. अपीलकर्ता जितेंद्र, अमलेश व विनोद ने निचली अदालत द्वारा 17 सितंबर 2011 को दी गयी आजीवन कारावास की सजा को चुनौती दी थी.

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