आइए मॉनसून का लुत्फ उठायें, पौधा लगायें, पर्यावरण बचायें
कब से मन रहा है वन महोत्सव
पूरे देश में वर्ष 1951 से वन महोत्सव मनाया जाता है. तत्कालीन कृषि मंत्री के मुंशी के आदेश के बाद शुरू हुआ. उस वक्त वन विभाग कृषि विभाग का ही हिस्सा था. वर्ष 1976 तक वन विभाग कृषि विभाग के अधीन रहा. वर्ष 1976 में वन मंत्रालय अलग हो गया था. इसके बाद पूरे राज्य में वन विभाग कृषि विभाग से अलग होकर काम करने लगा. वर्ष 1951 में कृषि विभाग द्वारा शुरू की गयी परंपरा आज तक जारी है. पूरे देश में जुलाई माह में पौधरोपण किया जाता है.वन विभाग के नर्सरी से ले सकते हैं पौधा
एक पौधा, सौ पुत्र के समान
हर पौधा न केवल एक जीवन है, बल्कि सौ भविष्य का आधार भी है. जैसे एक पुत्र परिवार का सहारा बनता है, वैसे ही एक पौधा धरती का सहारा बनता है. यह छांव देता है, फल देता है, जीवनदायिनी हवा देता है. बदलते पर्यावरण और बढ़ते प्रदूषण के बीच यह संदेश और भी प्रासंगिक हो गया है पौधा लगाइए, जैसे संतान पालते हैं, वैसे ही उसे तैयार कीजिए. यही हमारे कल की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है.जंगल बचाने के लिए बना है वन अधिकार कानून
एक लाख पौधों का रोपण लक्ष्य : पद्मश्री चामी मुर्मू
इस वर्ष अच्छी बारिश हो रही है. हर साल पूरे जुलाई में वन महोत्सव मनाया जाता है. इस दौरान प्रयास होता है कि खाली जगहों पर अधिक से अधिक पौधे लगाये जायें. यह क्रम शुरू हो गया है. फिलहाल थोड़ी बारिश कम होगी तो तेजी से पौधे लगाये जायेंगे.
एक नजर में झारखंड में वनों की स्थिति
कुल वन क्षेत्र : 23765.78 वर्ग किलोमीटरकुल भौगोलिक क्षेत्र का : 29.81 फीसदीबहुत घना क्षेत्र : 2635.35 वर्ग किलोमीटरमध्यम घना वन क्षेत्र : 9640.99 वर्ग किलोमीटरखुला वन क्षेत्र : 11489.44 वर्ग किलोमीटर—–
पर्यावरण योद्धा. ये हैं असली वन रक्षक
589 एकड़ में जंगल बचाकर बने ‘जंगल पुरुष’
‘रक्षाबंधन’ पर्व पर पेड़ों की पूजा कर लेते हैं संरक्षण का संकल्प
‘मेरी धरती, मेरी जिम्मेवारी’ अभियान चलाकर बने ‘बरगद बाबा’
””वन रक्षा बंधन”” बना पर्यावरण संरक्षण का जन महोत्सव
कोडरमा. पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कोडरमा जिला स्थित लक्ष्मीपुर गांव में वर्ष 1999 से आरंभ की गयी ‘वन रक्षा बंधन’ की परंपरा आज वन महोत्सव का रूप ले चुकी है. महादेव महतो द्वारा शुरू किये गये इस अभियान ने न केवल जंगलों को बचाने का सामाजिक आंदोलन खड़ा किया है, बल्कि धार्मिक आस्था और सामुदायिक सहभागिता को भी एक नयी दिशा दी है. वन रक्षा बंधन उत्सव के तहत गांव के लोग पूर्व निर्धारित दिन पर पास के जंगल में एकत्र होते हैं. सामूहिक बैठक होती है, पूजन सामग्री एकत्र की जाती है, और फिर लाल रंग के कपड़े से पेड़ों को राखी की तरह बांधा जाता है. इस दौरान वृक्षों की पूजा-अर्चना कर उनके संरक्षण की शपथ ली जाती है. इस अभियान की विशेष बात यह है कि इसमें सांप्रदायिक सौहार्द्र की अनूठी मिसाल भी देखने को मिलती है. वन संरक्षक मनोज दांगी के अनुसार, हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग एक साथ एक ही वेदी पर बैठकर पेड़ों की पूजा करते हैं. साधना और आराधना के इस साझा मंच पर सभी लोग जीव-जंतुओं को हानि न पहुंचाने और वनों की आजीवन रक्षा करने का संकल्प लेते हैं. वन विभाग के सहयोग से यह परंपरा अब 1000 से अधिक गांवों तक फैल चुकी है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है
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