रांची. झारखंड बिजली वितरण निगम (जेबीवीएनएल) की आधारभूत संरचना ऐसी है कि यह एक बारिश या आंधी-तूफान नहीं झेल पा रही है. आंधी-तूफान आते ही कहीं खंभे या तार टूट जाते हैं. कहीं इंसुलेटर पंक्चर हो जाता है, तो कहीं 33 केवी व 11 केवी लाइन ब्रेकडाउन हो जाती है. रांची में ही दो दिनों की बारिश में 400 खंभे और तार टूट गये. जेबीवीएनएल के छोटे-छोटे सामान्य उपकरण भी काफी पुराने हैं. इंसुलेटर जैसे उपकरण जिसकी लाइफ ही 15 साल की होती है, वह 20 से 25 साल पुराने है. ऐसे में बारिश होते ही इंसुलेटर पंक्चर होने की समस्या बढ़ जाती है. ऐसे में घंटों बिजली बाधित रहती है. प्रभात खबर ने जेबीवीएनएल के पूर्व व वर्तमान अभियंताओं से नाम नहीं छापने की शर्त समस्याओं और समाधान पर बात की. उनके निष्कर्ष यहां दिये जा रहे हैं.
एग्रेसिव प्रीवेंशन की कमी
जेबीवीएनएल द्वारा सारी लाइनों का मेंटनेंस वर्ष में कम से कम दो बार किया जाना है. जिसमें एक मेंटनेंस जनवरी-फरवरी में तथा दूसरा सिंतबर-अक्तूबर में होना चाहिए. 33 केवी लाइन में क्लैंप व कनेक्टर लगे नहीं होते हैं. जिस कारण बारिश में ब्रेकडाउन की समस्या होती है. लाइटनिंग अरेस्टर कहीं लगे हैं, तो कहीं नहीं लगे हैं. जिस कारण थंडरिंग होते ही लाइन ब्रेकडाउन हो जाती है. 33 केवी लाइन में प्रत्येक तीन किमी पर एक लाइटनिंग अरेस्टर लगा होना चाहिए, जो यहां नहीं है. यह पता है कि बारिश होगी ही, लेकिन एग्रेसिव प्रीवेंशन मेजर जेबीवीएनएल नहीं उठाता है.
20 साल पुराने इंसुलेटर डाल रहे बाधा
थंडरिंग के दौरान अक्सर इंसुलेटर पंक्चर हो जाते हैं, जिससे बिजली कट जाती है. इसकी बड़ी वजह है कि अभी भी 20 साल पुराने इंसुलेटर लगे हुए हैं, जबकि इसकी लाइफ 15 साल की ही होता है. अबाधित बिजली आपूर्ति के लिए बेहतर इंसुलेटर का होना जरूरी है. लेकिन जेबीवीएनएल सबसे अधिक उपेक्षा इंसुलेटर की ही कर रहा है. ऐसे में पुराने इंसुलेटर के क्षतिग्रस्त होते ही तार टूटने की घटना होती है और लाइन घंटों बाधित रहती है.
ऐसी व्यवस्था हो कि पेड़ तार पर नहीं गिरे
झारखंड में हर जगह जंगल और पेड़ हैं. यदि पेड़ के किनारे लाइन गुजरती है, तो इसके लिए नौ मीटर का कॉरिडोर बनाना होगा. यानी एक साइड पेड़ से 4.5 मीटर की दूरी पर ही तार हो. पेड़ की डाली की छंटाई हो भी, तो तार के साइड ही हो. जिससे कि आंधी आने पर पेड़ उखड़े , तो तार के विपरीत दिशा में गिरे.
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