शिखा मिंज, विनोद मोतीराम आत्राम और अलबिनुस हेंब्रोम को जयपाल जुलियुस हन्ना साहित्य पुरस्कार 2024
Ranchi News: शिखा मिंज, विनोद मोतीराम आत्राम और अलबिनुस हेंब्रोम को जयपाल जुलियुस हन्ना साहित्य पुरस्कार 2024 से रांची में सम्मानित किया गया है.
By Mithilesh Jha | November 30, 2024 9:11 PM
Ranchi News: ‘जयपाल जुलियुस हन्ना साहित्य पुरस्कार 2024’ समारोह शनिवार को डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान में आयोजित किया गया. इस अवसर पर सिलीगुड़ी पश्चिम बंगाल की शिखा मिंज को सादरी कविता संग्रह निरदन के लिए, महाराष्ट्र नांदेड़ के विनोद मोतीराम आत्राम को गोंड़ी कविता संग्रह हिरवाल मेटा के लिए और झारखंड के अलबिनुस हेंब्रोम को संताली कविता संग्रह सिरजोनरे जीवेदोक के लिए जयपाल जुलियुस हन्ना पुरस्कार मिला. समारोह का आयोजन प्यारा केरकेट्टा फाउंडेशन और टाटा स्टील फाउंडेशन ने किया था.
मेरी भाषा ही पहचान है – दमयंती बेसरा
मुख्य अतिथि पद्मश्री डॉ दमयंती बेसरा ने कहा कि मेरी भाषा ही मेरी पहचान है. हमें कभी भी नहीं सोचना चाहिए कि हम छोटे या कमतर हैं. हम आदिवासी और मूल निवासी हैं. हमसे ही बाकी दुनिया ने सब कुछ सीखा है. हमारी सभ्यता इस धरती पर सबसे पुरानी है और आदिवासी सभ्यताओं से ही प्राकृत और अन्य भाषाएं निकलीं हैं.
विस्थापन की वजह से आदिवासी हो रहे विपन्न – डॉ दमयंती
डॉ दमयंती ने कहा कि हमें जागरूक होना चाहिए. हम कभी संपन्न थे और अब विपन्न हो रहे हैं, तो इसका कारण विस्थापन जैसी समस्याएं हैं. उन्होंने कहा कि हमेशा आदिवासी ही विस्थापित क्यों हो? इसका हमें प्रतिकार करना चाहिए.
‘रचनाकारों ने आदिवासी जीवन को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया’
प्यारा केरकेट्टा फाउंडेशन की चेयरपर्सन ग्लोरिया सोरेंग ने कहा कि आज तीन उत्कृष्ट लेखकों को पुरस्कृत किया गया है. इनकी रचनाएं आदिवासी जीवन को बहुत प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करती हैं.
अपनी भाषा में लिखना और बोलना जरूरी – वंदना टेटे
प्यारा केरकेट्टा फाउंडेशन की वंदना टेटे ने कहा कि हमारी पहचान हमारे कपड़ों और रीति-रिवाजों से ही नहीं, बल्कि हमारी भाषा से भी है. अपनी भाषा में लिखना और बोलना जरूरी है.
चाय बागान के आंदोलन में सादरी भाषा हमें जोड़ती है – शिखा मिंज
पुरस्कार पाने वाली शिखा मिंज ने कहा कि चाय बागान के आंदोलन में सादरी भाषा ही हमें जोड़ती है. वहां पर कई साहित्य प्रेमी और लेखक हैं, लेकिन उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए कोई मंच नहीं है.
हम सब किसी न किसी रूप में संघर्ष की स्थिति में – अलबिनुस हेम्ब्रम
अलबिनुस हेम्ब्रम ने कहा कि आज हम सब किसी न किसी रूप में संघर्ष की स्थिति में हैं. अगर मैं लड़ नहीं सकता, तो मैं आदिवासी नहीं हूं, क्योंकि लड़ाई हमने अपने पुरखों से सीखी है. हम लड़ रहे हैं, अपने अस्तित्व के लिए और अपनी पहचान के लिए. कार्यक्रम में अश्विनी पंकज, वाल्टर भेंगरा, सिरिल हंस, विनोद कुमार सहित अन्य मौजूद थे.
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