Republic Day 2024: कर्तव्य पथ पर झारखंड की झांकी, तसर सिल्क की चमक में दिखी आदिवासी महिलाओं की दक्षता

इस साल गणतंत्र दिवस पर निकाली गई झारखंड की झांकी की थीम थी, 'झारखंड का तसर'. कर्तव्य पथ पर झारखंड की झांकी की रेशमी चमक ने सभी को अपनी ओर आकर्षित कर लिया. झारखंड की झांकी का कई लोगों ने खड़े होकर अभिवादन किया और खूब सराहा.

By Jaya Bharti | January 26, 2024 4:38 PM
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Republic Day 2024: राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में गणतंत्र दिवस पर मुख्य समारोह का आयोजन किया गया, जहां अलग-अलग राज्यों से आकर्षक झांकियां निकाली गईं. इस बीच झारखंड की झांकी की रेशमी चमक ने सभी को अपनी ओर आकर्षित कर लिया. झारखंड की झांकी में तसर सिल्क के उत्पादन में आदिवासी महिलाओं की दक्षता दिखी. झांकी में तसर कीट पालन, कोकून उत्पादन, बुनाई और डिजाइन के अनेक चरणों के साथ, परिधान के बनने से लेकर इसे वैश्विक स्तर तक पहुंचाने की यात्रा को बखूबी दिखाया गया. इस बार झारखंड की झांकी दर्शकों को तसर रेशम की समृद्ध विरासत से रूबरू कराती है. इस झांकी में झूमर लोक नृत्य और स्वदेशी संगीत भी पेश किया गया.

इस साल गणतंत्र दिवस पर यानी 26 जनवरी 2024 को निकाली गई झारखंड की झांकी की थीम थी, ‘झारखंड का तसर’. झांकी को बेहद खूबसूरत तरीके से सोहराय और कोहबर पेंटिंग के माध्यम से सजाया गया था. तसर सिल्क के उत्पादन से जुड़ी महिलाओं को झांकी में काम करते भी दिखाया गया. चाहे तसर उत्पादन हो या, परिधान का बनना या इसके वैश्विक स्तर तक पहुंचना, हर एक पहलू को अलग अलग चरण के माध्यम से दर्शाने की कोशिश की गई. झारखंड की झांकी का कई लोगों ने खड़े होकर अभिवादन किया. मालूम हो कि झारखंड भारत में टसर सिल्क का मुख्य उत्पादक है. झारखंड ने अपने तसर सिल्क के लिए प्रतिष्ठित जीआई (भौगोलिक संकेत) टैग के लिए भी आवेदन किया है. झारखंड को रेशम (तसर सिल्क) की राजधानी कहना भी गलत नहीं होगा.

प्राचीन काल में तसर सिल्क को ‘कोसा’ या ‘वन्य सिल्क’ भी कहा जाता था. हालांकि, अब यह अहिंसा सिल्क के नाम से भी प्रख्यात है, क्योंकि अब तसर सिल्क उत्पादन के लिए तसर कीट को मारने की जरूरत नहीं पड़ती है. नई तकनीक में कीट को जिंदा नकलने दिया जा रहा है, जबकि पारंपरिक विधि में सिल्क के उत्पादन के लिए कोकून को गर्म पानी में उबाला जाता था, जिससे तसर कीट की मौत हो जाती थी. ऐसे में नई तकनीक से तसर सिल्क उत्पादन जैव विविधता के संरक्षण में भी सहायक साबित हो रही है.

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