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- रामगढ़ के नेमरा गांव में हुआ था शिबू सोरेन का जन्म
- झारखंड राज्य के लिए 1973 में झामुमो की स्थापना की
- सामाजिक न्याय के प्रणेता Shibu Soren को प्यार और सम्मान से लोग ‘गुरुजी’ बुलाते थे
Shibu Soren Death News: झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक, झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा सांसद दिशोम गुरु शिबू सोरेन नहीं रहे. 81 साल की उम्र में आज उनका निधन हो गया. इसकी जानकारी सीएम हेमंत सोरेन ने एक्स पर दी. दिशोम गुरु के निधन के बाद झारखंड में 3 दिन का राजकीय शोक घोषित किया गया है. उनके निधन की खबर आते ही झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की पार्टी के झंडे झुका दिये गये.
आदरणीय दिशोम गुरुजी हम सभी को छोड़कर चले गए हैं।
— Hemant Soren (@HemantSorenJMM) August 4, 2025
आज मैं शून्य हो गया हूँ…
लंबे समय से किडनी की बीमारी और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे गुरुजी को 19 जून 2025 को दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में भर्ती कराया गया था. इसी दौरान उनको ब्रेन स्ट्रोक हुआ और उनकी हालत बिगड़ गयी. हालांकि, इलाज के दौरान उनकी स्थिति में सुधार हुआ था. काफी दिनों तक वेंटिलेटर पर रहने के बाद उन्होंने आज अंतिम सांस ली. उनके निधन की खबर से झारखंड में शोक की लहर दौड़ गयी है.
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रामगढ़ के नेमरा गांव में हुआ था शिबू सोरेन का जन्म
उनका जन्म 11 जनवरी 1944 को रामगढ़ जिले के नेमरा गांव में हुआ था. उनके पिता सोबरन सोरेन (Sobran Soren) शिक्षक थे. महाजनों के द्वारा उनकी हत्या के बाद शिबू सोरेन (Sibhu Soren) पढ़ाई छोड़कर गांव आ गये. आदिवासी समाज को एकजुट करना शुरू किया. 1970 के दशक में उन्होंने राजनीति में कदम रखा और आदिवासियों के हक के लिए संघर्ष शुरू कर दिया.
झारखंड राज्य के लिए 1973 में झामुमो की स्थापना की
दिशोम गुरु ने 4 फरवरी 1973 को बिनोद बिहारी महतो और एके राय के साथ मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की स्थापना की, जिसने अलग झारखंड राज्य के आंदोलन को गति दी. झामुमो और आजसू के आंदोलन के परिणामस्वरूप 15 नवंबर 2000 को बिहार से अलग होकर झारखंड राज्य का गठन हुआ. गुरुजी को झारखंड आंदोलन का जनक माना जाता है. उनके योगदान को पूरे देश में सम्मान की नजर से देखा जाता है.
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सामाजिक न्याय के प्रणेता Shibu Soren को प्यार और सम्मान से लोग ‘गुरुजी’ बुलाते थे
झामुमो सुप्रीमो को उनके समर्थक प्यार से ‘गुरुजी’ कहते थे. उन्होंने महाजनों और सूदखोरों के खिलाफ आदिवासियों को एकजुट किया. धनकटनी आंदोलन जैसे अभियानों के जरिये सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ी. उनकी सादगी और जनता के प्रति समर्पण ने उन्हें झारखंड की राजनीति में एक विशेष स्थान दिलाया. उनके नेतृत्व में JMM राज्य की सियासत में एक मजबूत ताकत के रूप में उभरी.
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