आदिवासी आंदोलन को राष्ट्रीय पहचान दिलाने वाले जननेता थे शिबू सोरेन

Shibu Soren ki Biography : ‘दिशोम गुरु’ शिबू सोरेन का निधन सोमवार को हो गया. उनके बेटे और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस संबंध में जानकारी दी. शिबू सोरेन आदिवासी आंदोलन को राष्ट्रीय पहचान दिलाने वाले जननेता माने जाते थे. आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें.

By Amitabh Kumar | August 4, 2025 1:09 PM
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Shibu Soren ki Biography : झारखंड के गठन में अहम भूमिका निभाने वाले अनुभवी आदिवासी नेता और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के संस्थापक शिबू सोरेन अपने पीछे एक ऐसी विरासत छोड़ गए हैं जिसने देश की राजनीति को नया स्वरूप दिया. शिबू सोरेन (81) के निधन से एक ऐसे राजनीतिक युग का अंत हो गया, जिसमें आदिवासी आंदोलन को राष्ट्रीय पहचान मिली.  रामगढ़ जिले के नेमरा गांव (तब बिहार में, अब झारखंड) में 11 जनवरी 1944 को जन्मे शिबू सोरेन देश के आदिवासी और क्षेत्रीय राजनीतिक परिदृश्य के सबसे प्रभावशाली चेहरों में से एक थे. उन्हें ‘दिशोम गुरु’ (भूमि के नेता) के नाम से भी जाना जाता है.

शिबू सोरेन अपने पूरे राजनीतिक जीवन में आदिवासियों के अधिकारों की निरंतर वकालत करते रहे. सोरेन परिवार के अनुसार, उनका शुरुआती जीवन व्यक्तिगत त्रासदी और गहरे सामाजिक-आर्थिक संघर्षों से भरा रहा. शिबू सोरेन सिर्फ 15 वर्ष के थे जब 27 नवंबर 1957 को उनके पिता शोबरन सोरेन की लुकैयाटांड जंगल (गोला ब्लॉक मुख्यालय से करीब 16 किलोमीटर दूर) में साहूकारों द्वारा कथित रूप से हत्या कर दी गई थी. इस घटना ने उन पर गहरा असर डाला और यह भविष्य में उनकी राजनीतिक सक्रियता को उत्प्रेरित करने वाला क्षण बन गया.

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उन्होंने 1973 में बंगाली मार्क्सवादी ट्रेड यूनियन नेता ए के रॉय और कुर्मी-महतो नेता बिनोद बिहारी महतो के साथ मिलकर गोल्फ ग्राउंड धनबाद में एक जनसभा में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की सह-स्थापना की. जल्द ही झामुमो एक अलग आदिवासी राज्य की मांग का मुख्य राजनीतिक स्वर बन गयी और उसे छोटानागपुर और संथाल परगना क्षेत्रों में व्यापक समर्थन मिला. जमींदारी शोषण के खिलाफ उनके जमीनी आंदोलन ने उन्हें एक बड़ा आदिवासी नेता बना दिया.

15 नवंबर 2000 को झारखंड राज्य का गठन हुआ

दशकों तक चले आंदोलन के बाद 15 नवंबर 2000 को झारखंड राज्य का गठन हुआ और उनकी मांग आखिरकार पूरी हुई. सोरेन का प्रभाव केवल राज्य की राजनीति तक सीमित नहीं था. वह दुमका से कई बार लोकसभा सदस्य चुने गए. आठवीं बार वह 16वीं लोकसभा में मई 2014-2019 तक सदस्य चुने गए थे. वह जून 2020 में राज्यसभा के लिए भी चुने गए. यूपीए सरकार में वह एक प्रमुख चेहरा थे और उन्होंने कोयला मंत्री के रूप में 23 मई से 24 जुलाई, 2004, 27 नवंबर 2004 से दो मार्च 2005 और 29 जनवरी से नवंबर 2006 तक कार्यभार संभाला. हालांकि, केंद्र में मंत्री पद के कार्यकाल के दौरान उन्हें गंभीर कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा.

चिरूदीह नरसंहार मामले में सोरेन के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी हुआ

जुलाई 2004 में, 1975 के चिरूदीह नरसंहार मामले में उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी हुआ, जिसमें उन्हें 11 लोगों की हत्या का मुख्य आरोपी बताया गया. वह कुछ समय तक भूमिगत रहे और फिर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. न्यायिक हिरासत में कुछ वक्त बिताने के बाद उन्हें सितंबर 2004 में जमानत मिली और नवंबर में फिर से केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया गया. बाद में, मार्च 2008 में एक अदालत ने उन्हें सभी आरोपों से बरी कर दिया.

सोरेन की कानूनी परेशानियां यहीं खत्म नहीं हुईं. 28 नवंबर 2006 को उन्हें 1994 के अपने निजी सचिव शशिनाथ झा के अपहरण और हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया. सीबीआई ने आरोप लगाया कि झा को 1993 में नरसिम्हा राव सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव के दौरान कांग्रेस और झामुमो के बीच राजनीतिक लेन-देन की जानकारी थी, इसलिए रांची में उनकी हत्या कर दी गयी थी. इस मामले ने देशभर में सुर्खियां बटोरीं, लेकिन बाद में सोरेन ने सजा के खिलाफ अपील की और निर्णय उनके पक्ष में आया। उच्चतम न्यायालय ने अप्रैल 2018 में सोरेन के बरी होने के फैसले को कायम रखा.

विवादों के बावजूद सोरेन झारखंड की राजनीति में एक प्रभावशाली हस्ती बने रहे

इन विवादों के बावजूद, सोरेन झारखंड की राजनीति में एक प्रभावशाली हस्ती बने रहे. उन्होंने तीन बार मार्च 2005 (दो मार्च से 11 मार्च तक महज 10 दिन के लिए), 27 अगस्त 2008 से 12 जनवरी 2009 और 30 दिसंबर 2009 से 31 मई 2010 तक झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में काम किया. हर बार गठबंधन राजनीति की नाजुक स्थिति के कारण उनका कार्यकाल छोटा रहा. जून 2007 में उनकी हत्या का एक असफल प्रयास हुआ, जब देवघर ज़िले के डुमरिया गांव के पास उनके काफिले पर बम फेंके गए. यह हमला उस समय हुआ जब वह गिरिडीह की एक अदालत में पेशी के बाद दुमका जेल ले जाए जा रहे थे.

इस सारे घटनाक्रम के बाद भी झारखंड में उनकी राजनीतिक पकड़ बनी रही. उन्होंने 38 वर्षों तक झामुमो के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया और अप्रैल 2025 में उन्हें पार्टी का संस्थापक संरक्षक बनाया गया. उनके पुत्र हेमंत सोरेन को झामुमो का अध्यक्ष चुना गया.  वर्तमान में पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस) का हिस्सा है. शिबू सोरेन का व्यक्तिगत जीवन भी उनकी राजनीतिक यात्रा से जुड़ा रहा है.

शिबू सोरेन के परिवार में कौन–कौन?

शिबू सोरेन के परिवार में पत्नी रूपी सोरेन, तीन बेटे और बेटी अंजनी हैं. उनकी बेटी झामुमो की ओडिशा इकाई की प्रमुख हैं. उनके बड़े बेटे दुर्गा सोरेन का मई 2009 में निधन हो गया था. दूसरे पुत्र हेमंत सोरेन, जो अब झारखंड के मुख्यमंत्री हैं, ने उनकी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाया है और कई बार मुख्यमंत्री पद संभाल चुके हैं. उनके सबसे छोटे बेटे बसंत सोरेन वर्तमान में विधायक हैं. झारखंड के कई लोगों के लिए शिबू सोरेन, उनकी पहचान और स्वशासन के लंबे संघर्ष का प्रतीक हैं और वह अपने पीछे एक ऐसी विरासत छोड़ गए हैं जो अब अगली पीढ़ी द्वारा आगे बढ़ाई जा रही है.

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