रांची. संसद और विधानसभा से पारित कानूनों के तहत बननेवाली नियमावली में उद्देशिका नहीं रहती है. इसके कारण नियमावली के उद्देश्यों के बारे में जानकारी नहीं मिल पाती है. प्राय: झारखंड में बनने वाली नियमावली को हाइकोर्ट में चुनौती दी जाती है. इससे कोर्ट में मामले बढ़ते हैं. झारखंड बनने के बाद कई बार शिक्षक नियुक्ति या टीइटी नियमावली बनायी गयी, फिर भी विवाद कम होने का नाम नहीं ले रहा है. ऐसा इसलिए है क्योंकि कानून या नियमावली बनाने के पहले उस पर सुझाव या आपत्ति नहीं ली जाती है. नेशनल लिटिगेशन पॉलिसी के तहत राज्य या राज्य के अधिकारियों का दायित्व है कि वे हमेशा इस बात का ख्याल रखें कि राज्य आम नागरिकों या सेवारत कर्मियों के मौलिक और कानूनी अधिकारों का संरक्षक है. कोई भी नियमावली बनाते समय अधिसूचना के पहले प्रभावित पक्षों का सुझाव या आपत्ति प्राप्त करने के लिए प्रस्तावित नियमावली का प्रारूप जारी करना चाहिए. प्राप्त सुझाव या आपत्ति पर समाधान भी प्रकाशित हो. उसके बाद नियमावली विधिवत रूप से अधिसूचित की जाये. ऐसा करने से विवाद कम होंगे. कोर्ट का भी समय बचेगा. उक्त बातें झारखंड हाइकोर्ट के अधिवक्ता अनिल कुमार सिंह ने एक सवाल के जवाब में कही. वह शनिवार को प्रभात खबर के ऑनलाइन लीगल काउंसेलिंग में लोगों के सवालों पर कानूनी सलाह दे रहे थे. बिहार के कटरा मुजफ्फरपुर, लातेहार, गढ़वा, हजारीबाग, चंदवा, खूंटी, रांची से कई लोगों के फोन आये. उनके सवालों पर समस्याओं से निकलने के लिए अधिवक्ता अनिल कुमार सिंह ने कानूनी सलाह दी.
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