ग्रामीण महिलाओं को स्वावलंबन की राह पर ला रहा उषा मार्टिन फाउंडेशन
हेडिंक्राॅफ्ट, जूट बैग, ठोंगा और सोहराई पेटिंग से मिला आर्थिक संबल
15 आदिवासी युवितयां बनी एकल विद्यालय की शिक्षक
रांची. ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में उषा मार्टिन फाउंडेशन लगातार ठोस पहल कर रहा है. टाटीसिलवे और आसपास के गांवों में अब तक 85 से अधिक महिलाओं को रोजगारोन्मुख प्रशिक्षण से जोड़ा गया है. इनमें से कई महिलाएं जूट बैग, फोल्डर और कागज के ठोंगे बनाने के काम में दक्ष हुई हैं. जबकि अन्य समूहों को पारंपरिक सोहराई पेंटिंग, बांस हस्तशिल्प और मछली पालन जैसे विविध क्षेत्रों में स्वरोजगार से जोड़ा गया है. हरातू गांव की महिलाओं ने ””रोशनी स्वयं सहायता समूह”” बनाकर सोहराई पेंटिंग के जरिए तीन माह में 40000 की आय अर्जित की है. समूह की महिलाएं अब न केवल खुद पेंटिंग करती हैं, बल्कि उनके लिए आवश्यक सामग्री जुटाने और विपणन का कार्य भी स्वयं कर रही हैं. इनकी आय को और बढ़ाने के लिए फाउंडेशन ने इन्हें ठोंगा निर्माण से भी जोड़ा है. समूह अब प्रतिदिन एक स्थानीय कंज्यूमर स्टोर को 1000 ठोंगे उपलब्ध करा रहा है.
स्वचालित ठेले से आसान हुआ स्वरोजगार
प्रशिक्षण से बदल रही ग्रामीण महिलाओं की तस्वीर
उषा मार्टिन फाउंडेशन के प्रमुख डॉ मयंक मुरारी के अनुसार, वर्ष 2024 में फाउंडेशन ने 300 से अधिक ग्रामीण महिलाओं को टेलरिंग, ब्यूटिशियन, फूड एंड बेवरेज, फैशन डिजाइनिंग, कढ़ाई, कप-प्लेट निर्माण और अन्य रोजगारमूलक कार्यों से जोड़ा है. वहीं, 200 से अधिक महिलाएं नगदी फसलों, मशरूम उत्पादन और ग्राफ्टेड सब्जियों के व्यवसाय से भी स्वायत्त आय अर्जित कर रही हैं. शिक्षा के क्षेत्र में भी कदम
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है
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