साहिबगंज. मोहर्रम की दसवीं तारीख को शहर के सभी मोहल्ले से अखाड़ा जुलूस निकाला जायेगा, जो सभी अखाड़ा जुलूस का मिलन एलसी रोड मुख्य सड़क में होगा. अखाड़ा जुलूस का मिलन पुरानी परंपरा है. इसमें बड़े मोहल्ले जो दर्जे में ऊंचे उनके इर्द-गिर्द पहले उनसे छोटे मोहल्ले का अखाड़ा परिक्रमा करेंगे. फिर इसके बाद छोटे मोहल्ले के ताजिया या सिपल के इर्द-गिर्द दूसरे मोहल्ले के अखाड़ा जुलूस उनके ताजिया या सिंपल और अखाड़ा की परिक्रमा करेंगे. अखाड़ा व ताजिया को एक जगह पर समेट दिया जाता है. लोग एकत्रित हो जाते हैं. इसके चारों ओर दूसरे अखाड़ा वाले परिक्रमा कर मिलन की परंपरा को निभाते हैं. यहां पर सभी अखाड़ा समिति के लोग अपने-अपने अखाड़ा लगाकर परंपरागत हथियारों से करतब दिखायेंगे. लोगों का मनोरंजन करते हैं. कुछ देर खेल होने के बाद फिर 10वीं तारीख को सभी मोहल्ले के लोग कुलीपाड़ा से निकलकर अपने-अपने मुहल्ले जायेंगे. 11वीं तारीख को सभी मोहल्ले के अखाड़ा जुलूस कुलीपाड़ा मोहल्ले में पहुंचेगा. यहां पर सभी मोहल्ले के अखाड़ा जुलूस का आपस में मिलन किया जायेगा. इसके बाद कुलीपाड़ा में पहलाम किया जायेगा. अखाड़ा जुलूस बारी-बारी से ईदगाह में पहलाम करेंगे. फिर अपने-अपने घर पहुंचेंगे. मोहर्रम के चांद के 7वीं तारीख की शाम से ही सभी मोहल्ले के इमामबाड़ा पर पैकर का आना-जाना शुरू हो जाता है. इमामबाड़ा ताजिया रखने का विशेष स्थल को कहा जाता है. जिसके ऊपर ताजिया या सिपल को रखने की परंपरा शुरू से चलती आ रही है. पैकर का काम सभी इमामबाड़े के पास जाकर इमाम हसन और इमाम हुसैन के नाम पर नाथशरीफ पढ़ते हैं. नाथशरीफ किसी पैगंबर या फिर बड़े वली की तारीफ में गया हुआ एक कविता होता है. वैसे तो पैकर बनने की परंपरा भी पुरानी है. इस मामले में जानकार बताते हैं कि मुहर्रम के चांद के पूर्व यदि किसी के घर में कोई बीमार पड़ जाता हो या काम काफी दिनों से रुका हुआ हो. या फिर कोई काम जो काफी शिद्दत के बाद नहीं हो रहा हो तो अपने बच्चों को 5 साल 10 साल या फिर 15 साल तक पैकर बनाने का निर्णय लेते हैं, जो प्रत्येक मोहर्रम के सातवीं तारीख से लेकर 9वीं तारीख तक उन्हें पैकर बनने के लिए छोड़ दिया जाता है. यह सिलसिला उनके द्वारा लिए गये प्रण के समय सीमा के अनुसार ही चलता रहता है.
संबंधित खबर
और खबरें