हूल क्रांति दिवस विशेष: क्या है दामिन-ए-कोह, इसका हूल क्रांति से क्या संबंध है

अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ संघर्ष करने वाले ये आदिवासी तब दामिन ए कोह कहे जाने वाले इलाके के भोगनाडीह गांव के रहने वाले थे.

By SurajKumar Thakur | June 25, 2020 7:50 PM
feature

रांची: 30 जून को हूल दिवस मनाया जाता है. इसी तारीख को संताल क्रांतिकारी भाइयों सिद्दो कान्हू चांद और भैरव ने साहूकारों, महाजनों और अंग्रेजी शासन के खिलाफ संघर्ष का एलान किया था.

दामिन-ए-कोह का हूल क्रांति से संबंध

अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ संघर्ष करने वाले ये आदिवासी तब दामिन ए कोह कहे जाने वाले इलाके के भोगनाडीह गांव के रहने वाले थे. हूल क्रांति को लेकर हम आपको काफी कुछ बताने जा रहे हैं. इस कड़ी में हम आपको सबसे पहले दामिन ए कोह के बारे में बताने जा रहे हैं. साथ ही ये भी बतायेंगे कि, दामिन ए कोह का संताल हूल आंदोलन से क्या संबंध है.

अंग्रेजों को मिल गया था दीवानी अधिकार

1765 ईस्वी में मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय ने बंगाल बिहार और उड़ीसा की दीवानी ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंप दी. इसके जरिये इन राज्यों से लगान वसूलने का अधिकार ईस्ट इंडिया कंपनी को मिल गया.

इसके अंतर्गत वर्तमान में संताल परगना में भी टैक्स वसूली का अधिकार भी अंग्रेजों को मिला. 1780 के दशक में स्थानीय जमींदारों ने पहाड़िया जनजाति के लोगों को खेती के लिये तैयार करने का प्रयास किया लेकिन असफल रहे.

राजमहल की पहाड़ियों में फ्रांसिस बुकानन

समय बीतता गया. 1810 के आसपास भागलपुर के तात्कालीन कलेक्टर ऑगस्टस क्वीसलैंड ने एक अंग्रेज ऑफिसर फ्रांसिस बुकानन को राजमहल की पहाड़ियों के सर्वेक्षण के लिये भेजा. सर्वेक्षण के दौरान बुकानन संथालों के एक गांव में पहुंच गया. यहां उसने देखा कि, संथाल आदिवासियों ने जंगल को साफ करके खेती योग्य जमीन तैयार की है. बीच-बीच में अपना आवास भी बना लिया है.

ये बात फ्रांसिस बुकानन ने जाकर ऑगस्टस क्वीसलैंड को बताई. क्वीसलैंड ने इसके बाद संतालों को राजमहल की पहाड़ियों की तलहटी में बसाना शुरू किया. इस काम में अंग्रेजों की मदद स्थानीय खेतोरी, भूमिहार और भगत जमींदारों ने किया. पहाड़िया आदिवासियों के मुकाबले संथाल जंगल को साफ करके उसे खेतों में तब्दील कर देने में ज्यादा कुशल थे.

संताल आदिवासियों को बसाया गया

कुछ ही सालों में राजमहल की पहाड़ियों की तलहटी में बड़े इलाके में जंगल साफ कर दिये गये. यहां खेती शुरू हो गयी. संताल आदिवासियों की आबादी बढ़ी और उनकी बस्तियां स्थापित हो गयी. शुरुआत में सब कुछ बहुत अच्छा था. संथाल अंग्रेजों के लिये काफी लाभदायक साबित हो रहे थे. कंपनी की तिजोरी भर रही थी.

इलाके में रहने वाली पहाड़िया राजमहल की पहाड़ियों के भीतरी इलाकों में चले गये. 1832 में ईस्ट इंडिया कंपनी की सरकार ने राजमहल की पहाड़ियों के तलहटी वाले इलाकों को दामिन ए कोह के नाम से सीमांकित कर दिया. कहीं कहीं इस इलाके का उल्लेख जंगल तरी के तौर पर भी मिलता है.

आपने इतिहास में स्थायी बंदोबस्त के बारे में पढ़ा होगा. जिसमें लगान की दर तय कर दी जाती थी. इसी दर से दामिन ए कोह में संतालों से भी लगान वसूली की जाने लगी. लेकिन, जिस समय फसल नहीं भी होती थी, लगान तय दर से ही वसूल जाता था. ऐसी स्थिति में आदिवासियों को महाजनों और साहूकरों से कर्ज लेना पड़ता था.

संतालों का शोषण और क्रांति की शुरुआत

महाजन और साहूकार गंलत तरीके से अंगूठा लगवा कर ऊंची ब्याज वसूलने लगे. एक तो लगान की ऊंची दर की मार, ऊपर से महाजनों और साहूकरों का शोषण….संताल आदिवासियों का धैर्य जवाब दे गया. इन्हीं में सिद्दो-कान्हू चांद और भैरव भी थे. जिन्होंने हूल क्रांति छेड़ी.

आंदोलन की शुरूआत किन परिस्थितियों में हुई. इसमें किस-किस ने भाग लिया. फूलो और झानों कौन थीं. ये हम आपको अगले अंक में बतायेंगे.

संबंधित खबर
संबंधित खबर और खबरें

Jharkhand News : Read latest Jharkhand news in hindi, Jharkhand Breaking News (झारखंड न्यूज़), Jharkhand News Paper, Jharkhand Samachar, Jharkhand Political news, Jharkhand local news, Crime news and watch photos, videos stories only at Prabhat Khabar.

होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version