
खरसावां.
खरसावां के बेहरासाही में नौ दिवसीय श्रीराम कथा के छठे दिन राम वन गमन, निषादराज से भेंट, केवट संवाद व केवट प्रसंग व भरत मिलाप का मार्मिक वर्णन किया. वृंदावन से पधारीं कथावाचिका दीदी दिव्यांशी ने व्यासपीठ ने कहा कि जब आप दूसरे की मर्यादा को सुरक्षित रखेंगे तभी आपकी मर्यादा सुरक्षित रह सकेगी. प्रबल प्रेम के पाले में पड़कर प्रभु राम का नियम बदलते देखा गया. रामजी को सीताजी व लक्ष्मण सहित गंगा नदी पार कराने से पूर्व केवट ने श्रीराम के चरण धोने की शर्त रखी, जिसके लिए हंसते हुए श्रीराम ने हां कर दी. गंगा नदी पार कराने के बाद केवट ने उतराई लेने से भी मना कर दिया. प्रभु श्रीराम से बोले कि प्रभु मैंने इस लौकिक संसार में आपको गंगाजी के एक तट से दूसरे तट में जाने में सहायता की है. आपके धाम आने पर मुझे भवसागर से पार लगा देना. वनवास के दौरान भगवान राम व निषाद राज की मित्रता मिसाल बनी.प्रभु श्रीराम के वन गमन कथा सुन श्रोताओं के आंखों से छलके आंसू:
इसके बाद व्यासपीठ से कथावाचिका दीदी दिव्यांशी ने प्रभु श्रीराम के वन गमन का बड़ा ही हृदय स्पर्शी चित्रण किया, जिसे सुनकर श्रोताओं के आंखों से प्रेम के आंसू छलक आये. रामजी का वन गमन सुनकर महाराज दशरथ ने प्राण त्याग दिया. कैकेयी का त्याग कर भरत की मां कौशल्या के भवन में आए. माता कौशल्या ने भरत को पूर्ण वात्सल्य प्रदान किया व राम वनवास और दशरथ मरण की संपूर्ण घटना को सुनाया. भरत ने मां के सामने शपथ पूर्वक कहा, कि मैं आपको भगवान श्रीराम से पुन: मिलाऊंगा.रामभक्त ले चला रे राम की निशानी…:
भाई-भाई के प्रेम का दर्शन कराने के लिए ही श्रीराम और भरत जी के मिलन का प्रसंग आया. दोनों भाई एक-दूसरे के लिए संपत्ति और सुखों का त्याग करने के लिए उद्यत थे और विपत्ति को अपनाना चाहते थे. यही भ्रातृप्रेम है. भरत ने भगवान की चरण पादुकाओं को अयोध्या ले जाकर सिंहासनारूढ़ किया. चौदह वर्ष तक उनकी सेवा की. यह भ्रातृ प्रेम की पराकाष्ठा है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है