कोटा में नीट की तैयारी कर रहा था नालंदा का आर्यन
मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान के कोटा में पिछले बुधवार यानी 24 मई की रात को बिहार के नालंदा जिले के जिस छात्र ने आत्महत्या की, उसकी पहचान आर्यन के रूप में हुई है. वह कोटा के रियाज रेजीडेंसी में रहता था. वह मेडिकल में दाखिला लेने के लिए कोटा में रहकर नीट की तैयारी कर रहा था. रियाज रेजीडेंसी में रहने से पहले वह जवाहर नगर में रहता था. फिलहाल, पुलिस मामले की जांच कर रही है. छात्र के परिजनों को इसकी सूचना दे दी गई, लेकिन अभी तक पुलिस को कारणों का पता नहीं चल सका है.
पांच महीने में अब तक नौ छात्रों की चली गई जान
मीडिया में एक खबर यह भी है कि इस साल पिछले पांच महीनों में कोटा में रहकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे करीब नौ छात्रों ने आत्महत्या कर लिया है. राजस्थान की शिक्षा की नगरी से प्रसिद्ध कोटा में देश भर के विभिन्न राज्यों से आकर छात्र नीट, जेईई और यूपीएससी समेत अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते हैं. कोटा में छात्रों द्वारा आत्महत्या करने की घटनाएं कोई नई नहीं है. इससे पहले भी सैकड़ों छात्रों द्वारा उठाए गए घातक कदम की घटनाएं सामने आई हैं.
क्या कहते हैं मनोचिकित्सक
मनोचिकित्सक डॉ प्रकाश झा कहते हैं कि बच्चों में कंपीटिशन की भावना और परिवार का प्रेशर अधिक है. बचपन से ही बच्चों पर डॉक्टर, इंजीनियर, आईएएस बनने का प्रेशर बनाया जाता है. बच्चे अपने परिवार से दूर रहते हैं, जिससे उन्हें फैमिली और सोशल सपोर्ट नहीं मिल पाता. मेडिकल और इंजीनियरिंग में सीटें कम हैं, जिसकी वजह से कंपीटिशन अधिक है. बच्चों के अभिभावक यह नहीं समझ पाते कि नीट, जेईई और यूपीएससी जैसी प्रतियोगी परीक्षाएं 10वीं-12वीं का एग्जाम नहीं है. यह कंपीटिशन है, जिसे एग्जाम से तुलना नहीं की जा सकती. बच्चे फैमिली प्रेशर, सोशल प्रेशर, और भय की वजह से तनाव और अवसादग्रस्त हो जाते हैं, जिससे वे घातक कदम उठा लेते हैं.
Also Read: बिहार के एक और छात्र ने कोटा में की आत्महत्या, नीट की कर रहा था तैयारी, कमरे में मिला प्रेम पत्र
क्या है उपाय?
डॉ प्रकाश झा कहते हैं कि लोग अपने बच्चों को डॉक्टर, इंजीनियर और आईएएस ऑफिसर बनाना चाहते हैं, उन अभिभावकों को यह समझना चाहिए कि उनके लिए बच्चे महत्वपूर्ण हैं. बच्चे संसार में रहेंगे, तो वे किसी भी क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं. अभिभावकों द्वारा बच्चों पर अननेसेरी प्रेशर क्रिएट नहीं करना चाहिए और न ही बच्चों के लिए लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए कि बच्चों को फलां कंपीटिशन में क्वालिफाई करना ही है. अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों की रुचि का ख्याल रखें और उन पर किसी प्रकार का प्रेशर न डालें. उन्हें अपने बच्चों के साथ फ्रेंडली बातचीत करनी चाहिए और एक दोस्ताना रिश्ता कायम करना चाहिए. अभिभावकों के लिए बच्चे महत्वपूर्ण होंगे, तो इस प्रकार की घटनाओं पर रोक लगाई जा सकती है.