श्रीलंका और भारत के कुछ राज्यों की स्थिति लगभग एक जैसी, राजनीतिक दल बंद करें मुफ्तखोरी: सुबह-ए-बनारस

वाराणसी में आज सामाजिक संस्था सुबह-ए- बनारस क्लब के बैनर तले प्रदर्शन किया गया. संस्था की मांग है कि शिक्षा, न्याय और इलाज के अलावा जनता को कुछ भी मुफ्त मत दो. मुफ्त खोरी लोगों को कामचोर और देश को कमजोर बनाती हैं.

By Prabhat Khabar News Desk | April 11, 2022 11:45 AM
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Varanasi News: जनता से वोट पाने के लिए राजनीतिक लोक-लुभावने वादों की आड़ में मुफ्त की रेवड़ियां बांटने वाले दलों पर अंकुश लगाने के लिए सामाजिक संस्था सुबह-ए- बनारस क्लब के बैनर तले प्रदर्शन किया गया. संस्था की मांग है कि शिक्षा, न्याय और इलाज के अलावा जनता को कुछ भी मुफ्त मत दो. मुफ्त खोरी लोगों को कामचोर और देश को कमजोर बनाती हैं. इसलिए ऐसा करना राजनीतिक दल बंद करे और देश की स्थिति सुदृढ़ करें.

संस्था के अध्यक्ष मुकेश जायसवाल ने राजनीतिक दलों द्वारा वोटरों को लुभाने के लिए किए जाने वाले वादों को देश की आर्थिक स्थिति के लिए कमजोर बताया. इसके गम्भीर परिणामों को देखते हुए ऐसी पार्टियों पर अंकुश लगाने की मांग रखी. अपनी बात को रखते हुए कहा कि सत्ता हथियाने के लिए राजनीतिक दल जिस तरह से लोक-लुभावन योजनाओं की घोषणा करते हैं, उसके कारण न सिर्फ आम आदमी को दुष्परिणाम झेलने पड़ते हैं, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था भी चौपट हो जाती है.

संस्था के लोगों ने कहा कि, आज श्रीलंका में जो कुछ हो रहा है, उसके लिए काफी हद तक ऐसे ही लोक-लुभावन योजनाएं जिम्मेदार हैं. विधानसभा चुनाव में लोक-लुभावने वादों की झड़ी लगी है. यह पता किए बिना की राज्य की स्थिति क्या है? सत्ता पर काबिज होने के लिए बिना राज्य की स्थिति जाने लोक लुभावने वायदों का पिटारा खोल दिया जाता है, जबकि वह राज्य पहले से ही आर्थिक रूप से गंभीर स्थिति में होता है. ऐसे ही लोक-लुभावने वादों को पूरा करने के चक्कर में उन राज्यों की हालात श्रीलंका की तरह हो सकती है. बहुत ज्यादा फर्क नहीं है श्रीलंका और भारत के कुछ राज्यों की सरकार के आंकड़े बता रहे हैं, कि तमिलनाडु, पंजाब, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल,और राजस्थान पर ज्यादा कर्ज है.

हमें नई रणनीति बनानी चाहिए, क्योंकि अगर इसे रोका नहीं गया तो एक दिन केंद्र पर भारी बोझ आएगा।.जिसका नुकसान पूरे भारत को होगा. अंत में सभी वक्ताओं ने सरकार से अपील करते हुए मांग की कि सरकार द्वारा गरीबों को दिए जाने वाला मुफ्त राशन का निर्णय स्वागत योग्य है. मगर यह जांच का विषय भी है, कि मुफ्त में बांटे गए राशन सही हाथ में पहुंच रहा है, या लाभान्वित व्यक्ति द्वारा उस राशन का धड़ल्ले के साथ बाजार में खरीद-फरोख्त हो रहा है.

साथ ही साथ फ्री में बिजली देने के बजाय अगर महंगी बिजली का रेट कम कर दिया जाए तो उसका सभी वर्गों (मध्यम वर्गीय परिवार) को भी लाभ मिलेगा जो कि एक सराहनीय कदम होगा. संस्था के अध्यक्ष मुकेश जायसवाल, उपाध्यक्ष अनिल केसरी के नेतृत्व में मैदागीन चौराहे पर प्रदर्शन किया गया.

रिपोर्ट- विपिन सिंह

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