NASA ने कोई परीक्षा नहीं ली, सरकार चाहती तो दलित को भेज सकती थी
उदित राज ने अपने बयान में यह भी कहा कि ऐसा नहीं है कि नासा ने कोई लिखित या प्रतियोगी परीक्षा ली हो जिसमें शुभांशु शुक्ला चयनित हुए हों. उन्होंने दावा किया कि यह एक राजनीतिक और व्यवस्थागत फैसला होता है, जिसमें सरकार प्रतिनिधित्व तय कर सकती थी. उनका कहना था कि 1984 में जब राकेश शर्मा अंतरिक्ष गए थे, तब वंचित समाज के लोग इतने सक्षम नहीं थे, लेकिन अब परिस्थिति बदल चुकी है और दलित-पिछड़े वर्ग के लोग भी योग्य हो चुके हैं. इसलिए इस बार उनके समाज से किसी को अंतरिक्ष में भेजा जाना चाहिए था.
बयान पर छिड़ी बहस, सोशल मीडिया पर बंटा देश
उदित राज के इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं. कुछ लोग उनके तर्क को सामाजिक न्याय के नजरिए से सही बता रहे हैं, वहीं कई लोगों ने इसे वैज्ञानिक उपलब्धियों पर राजनीति करने वाला बयान बताया. इंटरनेट पर ‘मेरिट बनाम आरक्षण’ जैसी बहसें फिर से ताजा हो गई हैं, जिसमें लोग सवाल कर रहे हैं कि क्या ऐसे मिशनों में भी जातिगत आधार लाना उचित है?
सरकार ने किया स्वागत, ISRO सूत्रों ने दी तकनीकी सफाई
शुभांशु शुक्ला की वापसी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनका स्वागत करते हुए इस उपलब्धि को देश के लिए ऐतिहासिक बताया. उन्होंने कहा कि यह भारत के गगनयान मिशन की दिशा में बड़ा कदम है. इस बीच ISRO से जुड़े सूत्रों ने अनौपचारिक रूप से स्पष्ट किया कि Axiom-4 मिशन पूरी तरह तकनीकी मानकों और विशेषज्ञता पर आधारित था. इसमें चयन अंतरराष्ट्रीय साझेदारी और टेस्ट पायलट अनुभव के आधार पर हुआ, न कि किसी जातिगत समीकरण से.
क्या भविष्य के मिशनों में दिखेगा सामाजिक संतुलन?
उदित राज का बयान भले ही विवादों में हो, लेकिन इससे एक बार फिर यह बहस जरूर शुरू हो गई है कि क्या विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में भी सामाजिक प्रतिनिधित्व की भावना को बढ़ावा दिया जाना चाहिए? कई समाजशास्त्री मानते हैं कि लंबे समय के लिए समाधान यह है कि वंचित वर्गों को वैज्ञानिक और तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में अधिक अवसर मिलें, ताकि वे स्वयं मेहनत से इन उपलब्धियों तक पहुंच सकें. इसके लिए सरकार को स्कॉलरशिप, ट्रेनिंग और स्टेम शिक्षा में आरक्षित योजनाओं को और सशक्त करना होगा.