महाराणा सांगा को बताया ‘गद्दार’, फिर भी सांसद सुमन पर नहीं चलेगा केस, संविधान का ये आर्टिकल बना ढाल

MP Ramji Lal Suman Controversial Statement: मामले की सुनवाई करते हुए MP-MLA कोर्ट के जस्टिस दीपक नाथ सरस्वती ने कहा कि संविधानिक प्रावधानों का हवाला देते हुए अगर कोई संसद में बयान दिया गया है.

By Shashank Baranwal | May 21, 2025 10:06 AM
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MP Ramji Lal Suman Controversial Statement: हाथरस की MP-MLA कोर्ट ने समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद रामजी लाल सुमन के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया गया है. याचिका में उन पर संसद में महाराणा सांगा को “गद्दार” कहने का आरोप लगाते हुए क्षत्रिय समाज का अपमान करने का दावा किया गया था.

कोर्ट ने याचिका किया नामंजूर

मामले की सुनवाई करते हुए MP-MLA कोर्ट के जस्टिस दीपक नाथ सरस्वती ने कहा कि संविधानिक प्रावधानों का हवाला देते हुए अगर कोई संसद में बयान दिया गया है, तो उस पर किसी अदालत में कार्यवाही नहीं की जा सकती है. इसी आधार पर कोर्ट ने याचिका को अस्वीकृत करते हुए नामंजूर कर दिया गया. दरअसल, मतेंद्र सिंह गहलोत ने कोर्ट में खुद को महाराणा सांगा का वंशज बताते हुए याचिका दाखिल की थी. इस दौरान उनका कहना है कि पूरा क्षत्रिय समाज महाराणा सांगा के शौर्य और सम्मान से अपनी पहचान जोड़ता है.

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FIR दर्ज नहीं करने पर मुकदमा

गहलोत ने इससे पहले पुलिस में शिकायत दर्ज कराने की भी कोशिश की थी, लेकिन कोई FIR दर्ज नहीं की गई. इसके बाद उन्होंने अदालत का रुख किया. हालांकि, कोर्ट की तरफ से मामला खारिज कर दिया गया.

संविधान का ये अनुच्छेद बना सुरक्षा का ढाल

मामले में कोर्ट ने सीओ सिटी से जांच कराई गई थी. जांच रिपोर्ट में यह निष्कर्ष निकला कि सांसद सुमन का बयान संसद के भीतर दिया गया था और यह हाथरस जिले से संबंधित नहीं है. यही वजह है कि जांच रिपोर्ट के आधार पर कोर्ट ने इस याचिका को नामंजूर कर दिया. एडवोकेट रामदास, बृजमोहन राही और लल्लन बाबू एडवोकेट ने जानकारी दी कि कोर्ट ने अपने आदेश में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 105(2) का उल्लेख किया है. इस अनुच्छेद के अनुसार, संसद अथवा उसकी किसी समिति में दिए गए वक्तव्यों को लेकर सांसद के खिलाफ किसी भी न्यायालय में कोई आपराधिक कार्यवाही नहीं की जा सकती है.

इसलिए नहीं बना कोई केस

हालांकि, रामजी लाल सुमन ने संसद के बाहर भी अपने बयान की पुष्टि की थी, लेकिन मूल बयान संसद में दिया गया था, इसलिए किसी गंभीर अपराध का मामला नहीं बनता है. इसी आधार पर अदालत ने भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 173(4) के तहत दायर याचिका को नामंजूर करते हुए खारिज कर दिया.

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