
Shauryanama Maha Abhiyan 2025: उत्तर प्रदेश के बस्ती जनपद के ऐतिहासिक गांव महुआ डाबर से ‘शौर्यनामा’ महाअभियान 2025 का भव्य शुभारंभ किया गया. 1857 की क्रांति के दौरान इस छोटे से गांव ने ब्रिटिश सेना के खिलाफ साहसिक विद्रोह किया था, जिसके प्रतिशोध में 3 जुलाई 1857 को इसे पूरी तरह जला दिया गया और ‘गैर-चिरागी’ (जहां अब कोई चिराग नहीं जलेगा) घोषित कर नक्शे से मिटा दिया गया था. 2011 की खुदाई और 2022 में स्वतंत्रता संग्राम सर्किट में शामिल होने के बाद यह गांव फिर से राष्ट्र की स्मृति में लौट आया. ‘शौर्यनामा’ महाअभियान के जरिए महुआ डाबर की गाथा को राष्ट्रीय चेतना में स्थापित करना और आने वाली पीढ़ियों को यह बताना कि हर बलिदान मायने रखता है, चाहे वह इतिहास की परछाइयों में खो ही क्यों न गया हो.
सैकड़ों ग्रामीणों का निःशुल्क स्वास्थ्य जांच और मुफ्त दवा वितरण
समारोह में निःशुल्क स्वास्थ्य परामर्श शिविर आयोजित किया गया, जिसमें सैकड़ों ग्रामीणों की शुगर, बीपी, मलेरिया, टायफायड और हीमोग्लोबिन की जांच कर मुफ्त दवाएं वितरित की गईं. यह शिविर स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों की सेवा-भावना की याद दिलाता प्रतीत हुआ.
स्वतंत्रता संग्राम की दुर्लभ धरोहरों की प्रदर्शनी
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की दुर्लभ धरोहरों की प्रदर्शनी का उद्घाटन हुआ, जिसमें महुआ डाबर, 1857 की क्रांति और देश के विभिन्न हिस्सों के क्रांतिकारियों से जुड़ी दस्तावेजी सामग्रियां, चित्र और सामग्री प्रदर्शित की गईं. यह प्रदर्शनी इतिहास के उस अध्याय को फिर से खोलती है, जिसे समय ने लगभग भुला दिया था.
“महुआ डाबर जलेगा नहीं, जले हुए इतिहास को जगाएगा!”
दोपहर 3 बजे शहीद अशफाक उल्ला खां स्मृति द्वार से क्रांतिकारी वंशजों और प्रमुख अतिथियों का स्वागत कर क्रांति स्थल तक यात्रा निकाली गई. शाम 4.30 बजे से ‘संकल्प सभा’ का आयोजन हुआ, जिसे 1857 के विद्वान देव कबीर, शहीद शोध संस्थान के सूर्यकांत पांडेय, गुलजार खां के वंशज डॉ. इरफान खान, मुराद अली, संतराम मौर्य, विनय कुमार आदि ने संबोधित किया. कार्यक्रम का संचालन डॉ शाह आलम राना ने किया. शाम में महुआ डाबर विजय दिवस के प्रतीक स्वरूप मशाल जलाकर गांव को ‘गैर-चिरागी’ की पीड़ा से रोशन किया गया. लोगों ने एक स्वर में नारा दिया— “महुआ डाबर जलेगा नहीं, जले हुए इतिहास को जगाएगा!”