बिजली बाधित हुई तो जाएगी नौकरी
संशोधित नियमों के मुताबिक, अगर कोई कर्मचारी जानबूझकर या लापरवाही के चलते बिजली आपूर्ति में बाधा डालता है और तत्काल जांच संभव नहीं है, तो उसे सीधे सेवा से बर्खास्त किया जाएगा. इतना ही नहीं ऐसे कर्मचारियों को भविष्य में किसी भी सरकारी सेवा में नियुक्ति नहीं मिलेगी. साथ ही दोषी पाए गए कर्मियों के लिए पदावनति (डिमोशन) का भी प्रावधान रखा गया है.
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हड़ताल की चेतावनी से पहले सख्ती
यह संशोधन ऐसे समय में लाया गया है जब विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने 29 मई से कार्य बहिष्कार का ऐलान किया है. यह विरोध पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगमों के प्रस्तावित निजीकरण के खिलाफ है. इस संशोधन को लेकर विद्युत कर्मचारी संगठनों का कहना है कि निजीकरण से उपभोक्ताओं पर आर्थिक बोझ बढ़ेगा और कर्मचारियों की नौकरी असुरक्षित हो जाएगी. संघर्ष समिति के नेताओं ने UPPCL के इस संशोधन को “अलोकतांत्रिक” बताते हुए इसकी कड़ी आलोचना की है. उनका आरोप है कि सरकार दबाव बनाकर आंदोलन को कुचलना चाहती है. हालांकि पॉवर कॉर्पोरेशन का कहना है कि प्रदेश में 24 घंटे बिना किसी समस्या के बिजली सेवा बनाए रखने के लिए यह कदम जरूरी है.
बिजली कर्मचारियों के सामने बड़ी चुनौती
दरअसल, बिजली विभाग का निजीकरण उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ वर्षों से चर्चा का विषय बना हुआ है. 2020 में भी निजीकरण के खिलाफ राज्य भर में बड़े पैमाने पर हड़ताल हुई थी, जिससे कई जिलों में बिजली आपूर्ति प्रभावित हुई थी. वहीं इस संशोधन के बाद बिजली कर्मचारियों के सामने बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है. अगर कोई कर्मचारी लापरवाही बरतता है या बिजली सेवा बाधित करता है, तो बिना सुनवाई के उसकी नौकरी जा सकती है.
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