उत्तर प्रदेश रोडवेज की खस्ताहाल व्यवस्था: रोजाना 3,000 बसें खड़ी, यात्रियों को हो रही परेशानी और निगम को करोड़ों का नुकसान

Upsrtc News: उत्तर प्रदेश में रोजाना लगभग 3,000 रोडवेज बसें खराबी या स्टाफ की कमी के कारण डिपो में खड़ी रह जाती हैं. इससे यात्रियों को परेशानी और परिवहन निगम को करोड़ों का नुकसान हो रहा है. एमडी ने अधिकारियों को फटकार लगाते हुए सख्त कार्रवाई की चेतावनी दी है.

By Abhishek Singh | June 14, 2025 12:12 PM
an image

Upsrtc News: उत्तर प्रदेश में रोडवेज बसों की स्थिति दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही है. प्रदेश में हर दिन करीब 3,000 रोडवेज बसें या तो खराबी के कारण डिपो में खड़ी रहती हैं या फिर उन्हें चलाने के लिए ड्राइवर और कंडक्टर जैसे स्टाफ की कमी सामने आ रही है. इस वजह से ये बसें अपनी तय रूटों पर नहीं चल पा रही हैं और हजारों यात्रियों को जबरन निजी या डग्गामार वाहनों की शरण लेनी पड़ती है. इससे न केवल आम जनता को असुविधा हो रही है, बल्कि राज्य परिवहन निगम को भी करोड़ों रुपये के राजस्व का नुकसान उठाना पड़ रहा है.

लखनऊ में 190 बसें खड़ी, एमडी ने दिए सख्त निर्देश

राजधानी लखनऊ में स्थिति सबसे ज्यादा चिंताजनक है. यहां 999 बसों में से 190 बसें रोजाना खड़ी रहती हैं. इस गंभीर स्थिति को देखते हुए उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम के प्रबंध निदेशक (एमडी) मासूम अली सरवर ने अधिकारियों की जमकर क्लास लगाई. उन्होंने सभी क्षेत्रीय अधिकारियों को निर्देश दिया है कि मरम्मत कार्य में किसी भी प्रकार की लापरवाही स्वीकार नहीं की जाएगी और यात्रियों की सुविधा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए.

एमडी ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि यह समस्या सिर्फ तकनीकी नहीं बल्कि प्रबंधन की विफलता का भी परिणाम है. उन्होंने कहा कि आने वाले तीन महीनों में प्रदर्शन का आकलन कर संबंधित अधिकारियों की जवाबदेही तय की जाएगी और खराब प्रदर्शन करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी.

राज्य में सिर्फ 11,000 बसें ही दौड़ रहीं, बाकी डिपो में खड़ी

प्रदेश में परिवहन निगम के पास कुल 13,599 साधारण बसें हैं. इनमें से हर दिन औसतन सिर्फ 11,000 ही चल पा रही हैं, यानी करीब 2,600 से 3,000 बसें डिपो में खड़ी रह जाती हैं. बसों के खड़े होने की मुख्य वजह खराबी, कलपुर्जों की कमी, और चालक-परिचालकों की भारी संख्या में रिक्त पद हैं. सबसे अधिक खड़ी बसें गाजियाबाद परिक्षेत्र में हैं, जहां 1,040 में से 182 बसें रूट पर नहीं चल रही हैं. इसके बाद मेरठ में 235, कानपुर में 210, लखनऊ में 190 और मुरादाबाद में 197 बसें रोजाना खड़ी रहती हैं.

कुछ क्षेत्रों में स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर है, जैसे नोएडा जहां सिर्फ 3 बसें खड़ी हैं. लेकिन कानपुर, चित्रकूट, देवीपाटन, मेरठ और प्रयागराज जैसे परिक्षेत्रों में हालात अत्यंत खराब हैं.

अधिकारियों की लापरवाही बनी समस्या की जड़

डिपो में खड़ी बसों की समस्या सिर्फ खराब मशीनों तक सीमित नहीं है. कई स्थानों पर अधिकारियों की लापरवाही भी इसका बड़ा कारण बन गई है. न तो नियमित निरीक्षण हो रहा है और न ही यात्रियों की शिकायतों को गंभीरता से लिया जा रहा है. एमडी के निर्देशों को भी कई बार नजरअंदाज कर दिया जाता है, जिससे जमीनी हालात और बिगड़ते जा रहे हैं.

विशेष रूप से कानपुर परिक्षेत्र के जीएम अनिल कुमार, जो खुद क्षेत्रीय प्रबंधक भी हैं, उनके क्षेत्र में सबसे ज्यादा बसें खड़ी हैं. इससे उनकी कार्यप्रणाली पर सवाल उठना लाजमी है.

एसी बसों की स्थिति भी चिंताजनक

परिवहन निगम के बेड़े में कुल 700 एसी बसें भी शामिल हैं, लेकिन इनमें से औसतन 230 बसें रोजाना डिपो में खड़ी रहती हैं. गर्मी के इस मौसम में यात्रियों को ठंडक भरी यात्रा की जरूरत है, लेकिन बसें रूट से बाहर होने के कारण यात्री मजबूरी में अन्य साधनों का सहारा ले रहे हैं. लखनऊ में 30% से अधिक एसी बसें डिपो में खड़ी हैं, जबकि सहारनपुर परिक्षेत्र में स्थिति और भी खराब है जहां आधे से ज्यादा एसी बसें चल नहीं रही हैं.

गोरखपुर, मेरठ और कानपुर जैसे बड़े शहरों में भी एसी बसों की बड़ी संख्या खड़ी है, जिससे न केवल आमजन की यात्रा प्रभावित हो रही है, बल्कि रोडवेज को भी वित्तीय नुकसान उठाना पड़ रहा है.

आवश्यक सुधार की जरूरत

परिवहन निगम की इस बिगड़ती स्थिति को देखते हुए अब सुधारात्मक कदम उठाना अत्यंत आवश्यक हो गया है. सबसे पहले, बसों की मरम्मत प्रक्रिया को तेज और पारदर्शी बनाना होगा. इसके अलावा, ड्राइवर और कंडक्टर जैसे स्टाफ की भर्ती प्रक्रिया को शीघ्र पूरा किया जाना चाहिए ताकि स्टाफ की कमी दूर की जा सके.

डिपो में पड़े वाहनों की नियमित जांच होनी चाहिए और उनके जल्द से जल्द संचालन में लाने के लिए अलग से मॉनिटरिंग सेल बनाया जाना चाहिए. इसके साथ ही, अधिकारियों की जवाबदेही तय की जानी चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी स्थिति न उत्पन्न हो.

उत्तर प्रदेश जैसे विशाल राज्य में सार्वजनिक परिवहन की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है. लेकिन रोडवेज की यह स्थिति सरकार की घोषणाओं और जमीनी सच्चाई के बीच भारी अंतर को उजागर करती है. यदि जल्द कदम नहीं उठाए गए तो यह न केवल आर्थिक दृष्टिकोण से नुकसानदेह होगा, बल्कि यात्रियों की रोजमर्रा की समस्याएं और बढ़ती जाएंगी. अब समय है कि शासन-प्रशासन इस समस्या को प्राथमिकता देते हुए सख्त और प्रभावी कदम उठाए ताकि रोडवेज बसें फिर से पूरे राज्य में सुचारू रूप से दौड़ सकें.

संबंधित खबर
संबंधित खबर और खबरें

UP News in Hindi उत्तर प्रदेश भारत का सबसे अधिक जनसंख्या वाला राज्य है, जहां 20 करोड़ से ज्यादा लोग रहते हैं. यह राज्य प्रशासनिक रूप से 75 जिलों और 18 मंडलों में बंटा हुआ है. इसकी राजधानी लखनऊ है. वर्तमान में यहां भारतीय जनता पार्टी की सरकार है और योगी आदित्यनाथ लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री पद पर काबिज हैं. लखनऊ, कानपुर, प्रयागराज, वाराणसी, अयोध्या, गोरखपुर, सीतापुर, इटावा, मथुरा, मुरादाबाद, मेरठ और बुलंदशहर जैसे शहर इसे पहचान देते हैं. देश की राजनीति में उत्तर प्रदेश की भूमिका बेहद अहम मानी जाती है. अक्सर कहा जाता है कि देश की सत्ता का रास्ता यूपी से होकर ही जाता है. प्रदेश की हर बड़ी खबर सबसे पहले जानने के लिए जुड़े रहिए प्रभात खबर डिजिटल पर.

होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version