विस में तृणमूल विधायकों के विरोध के बाद भाजपा का वॉकआउट

शुक्रवार को विधानसभा में नेताजी सुभाष खेल एवं उद्यमिता विश्वविद्यालय विधेयक, 2025 पर बहस के दौरान एक अभूतपूर्व स्थिति देखने को मिली.

By AKHILESH KUMAR SINGH | June 21, 2025 1:46 AM
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संवाददाता, कोलकाता

शुक्रवार को विधानसभा में नेताजी सुभाष खेल एवं उद्यमिता विश्वविद्यालय विधेयक, 2025 पर बहस के दौरान एक अभूतपूर्व स्थिति देखने को मिली. सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के विधायकों और मंत्रियों द्वारा आधे घंटे तक चले विरोध प्रदर्शन के बाद विपक्षी भाजपा विधायकों ने सदन से वॉकआउट कर दिया. यह हंगामा तब शुरू हुआ जब भोजनावकाश के बाद दूसरे सत्र में शिक्षा मंत्री ब्रात्य बसु द्वारा विधेयक पेश किये जाने के तुरंत बाद भाजपा के मुख्य सचेतक शंकर घोष विधेयक पर बोलने के लिए खड़े हुए.

मंत्री बाबुल सुप्रियो ने शंकर घोष को बीच में रोकते हुए सवाल किया कि तृणमूल विधायकों को उनकी बात क्यों सुननी चाहिए, जबकि वे और भाजपा के अन्य विधायक पिछले दिन बिक्री कर संबंधी संशोधन विधेयक पर वित्त मंत्री चंद्रिमा भट्टाचार्य के जवाब के दौरान सदन छोड़कर चले गये थे.

सुप्रियो का समर्थन करते हुए सदन में मौजूद 100 से अधिक तृणमूल विधायक खड़े हो गये और भाजपा विधायक के खिलाफ नारेबाजी करने लगे. इस दौरान विधानसभा अध्यक्ष बिमान बनर्जी ने घोष को अपना भाषण जारी रखने को कहा. बनर्जी ने कहा : कल मुझे आपके और अन्य भाजपा विधायकों के बयानों को सदन की कार्यवाही से हटाना पड़ा, क्योंकि मंत्री के जवाब देने के दौरान आप चले गये थे. यह सदन का अपमान था. लेकिन मैं चाहता हूं कि सदन चले, इसलिए मैं चाहता हूं कि आप बोलें.

हालांकि, तृणमूल के मुख्य सचेतक निर्मल घोष, वरिष्ठ मंत्री अरूप विश्वास, मंत्री चंद्रिमा भट्टाचार्य और मंत्री बाबुल सुप्रियो समेत कई तृणमूल विधायकों ने शंकर घोष और अन्य भाजपा सदस्यों के आचरण का विरोध जारी रखा. विधानसभा अध्यक्ष ने उत्तेजित तृणमूल सदस्यों को शांत करने की कोशिश की, लेकिन हंगामा लगभग आधे घंटे तक जारी रहा, जिसके बाद सदन में मौजूद करीब 20 भाजपा विधायक सदन से बाहर चले गये.

विधानसभा परिसर के बाहर पत्रकारों से बात करते हुए शंकर घोष ने कहा कि विपक्ष की आवाज को दबाया जा रहा है और यह सत्तारूढ़ दल की असहिष्णुता को दर्शाता है. उन्होंने कहा : मेरा नाम विधेयक पर बहस के लिए वक्ता के रूप में सूचीबद्ध किया गया था. मैं अपने विचार व्यक्त करना चाहता था. लेकिन सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस नहीं चाहती कि लोकतंत्र चले. उन्होंने विपक्ष को बोलने नहीं दिया और अध्यक्ष ने कोई कार्रवाई नहीं की.

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