पूछा- क्या सड़कें और कुछ घर ही असली विकास है? लोगों के लिए रोजी-रोजगार कहां है? खड़गपुर. झाड़ग्राम के बेलपहाड़ी स्थित माजूगोड़ा गांव में 15 साल जेल में बिताने के बाद पूर्व माओवादी नेता चंदना सिंह उर्फ शोभा मुंडा अपने घर लौटी हैं. अपने ईंटों से बने एस्बेस्टस छत वाले घर के बरामदे में बैठकर वह अपने भतीजे-भतीजियों को किस्से-कहानियां सुनाती दिखती हैं और कभी-कभी अपने पालतू तोते के साथ खेलती हैं, जैसे वह पक्षी एक आजाद पंछी हो. अपनी रिहाई के कुछ ही घंटों बाद शोभा ने अपने अतीत को बयां किया. उन्होंने बताया कि गांव के प्राथमिक विद्यालय में चौथी कक्षा तक पढ़ने के बाद उन्होंने हाई स्कूल में दाखिला लिया था, लेकिन उनकी पढ़ाई आगे नहीं बढ़ पायी. उन्होंने वंचना का विरोध किया और उनका नाम माओवादियों के साथ जुड़ गया, जहां उनका नया नाम शोभा था. आज उन्हें अपने अतीत पर अफसोस है. वह कहती हैं : अगर मैंने उनकी (माओवादियों) मदद न की होती, अगर मैंने विरोध न किया होता, तो मैं भी पांच अन्य लोगों की तरह सामान्य जीवन जी सकती थी. शोभा के अनुसार, उनके गांव का माहौल काफी बदल गया है. पहले इतने घर नहीं थे. अब सरकार घर दे रही है, लेकिन इतने कम पैसों में घर कैसे बनेंगे? उनके बड़े भाई तारक सिंह को आवास योजना के तहत पक्का घर मिला है, लेकिन घर का काम अधूरा है. घर दिखाते हुए शोभा ने कहा कि इसकी ढलाई नहीं कर पाये. यह तीन साल से पड़ा हुआ है. पूर्व माओवादी नेता का दावा है कि जंगलमहल का वह विकास, जो वह वास्तव में चाहती थीं, नहीं हुआ है. शोभा का सवाल है : क्या सड़कें और कुछ घर ही असली विकास है? लोगों के लिए रोजगार कहां है? अगर लोगों को रोजगार नहीं मिलेगा, तो आर्थिक स्थिति कैसे बदलेगी? जब उनसे पूछा गया कि अधिकतर माओवादी आत्मसमर्पण कर चुके हैं और सरकारी पैकेज में नौकरियां पाकर मुख्यधारा में लौट रहे हैं, तो उनकी क्या राय है? इस पर शोभा ने जवाब दिया : मैंने आत्मसमर्पण नहीं किया. मैंने 15 साल जेल में बिताये हैं. मैंने अभी तक नहीं सोचा है कि आगे क्या करूंगी. मैं अपने परिवार के साथ चार महीने शांति से बिताना चाहती हूं. यह पूछे जाने पर कि क्या वह तृणमूल के साथ जुड़ेंगी, शोभा ने मुस्कुराते हुए कहा : तब तो लोग मुझे पीटेंगे. उधर, शोभा के भाई तारक ने कहा : मैं अपनी बहन को नौकरी के लिए मना लूंगा.
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