नौकरी गंवाये शिक्षकों का भाजपा नेताओं से आग्रह, पीएम से मिलने का मिले समय

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर नौकरी गंवाने वाले शिक्षकों ने अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने की इच्छा जाहिर की है. आंदोलनकारी शिक्षकों का कहना है कि वह इस मुद्दे को लेकर पीएम मोदी से हस्तक्षेप करने की मांग करना चाहते हैं और इसके लिए वह प्रधानमंत्री से सिर्फ पांच मिनट के लिए मिल कर अपनी बातों को उनके समक्ष रखना चाहते हैं.

By BIJAY KUMAR | May 28, 2025 10:50 PM
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कोलकाता.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर नौकरी गंवाने वाले शिक्षकों ने अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने की इच्छा जाहिर की है. आंदोलनकारी शिक्षकों का कहना है कि वह इस मुद्दे को लेकर पीएम मोदी से हस्तक्षेप करने की मांग करना चाहते हैं और इसके लिए वह प्रधानमंत्री से सिर्फ पांच मिनट के लिए मिल कर अपनी बातों को उनके समक्ष रखना चाहते हैं. शिक्षकों ने पूरे प्रकरण में हस्तक्षेप कर उनके संकट का समाधान निकालने में सहयोग करने का भी आग्रह किया. गौरतलब है कि प्रधानमंत्री गुरुवार को उत्तर बंगाल के अलीपुरदुआर में आयोजित कार्यक्रम में शामिल होंगे. प्रधानमंत्री के राज्य दौरे के समय ही इन शिक्षकों ने उनसे मिलने की इच्छा जाहिर की है. पिछले महीने उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद जिन शिक्षकों की नियुक्तियां रद्द कर दी गयी थीं, उनमें से कई शिक्षक उत्तर बंगाल के अलीपुरदुआर पहुंच चुके हैं. बर्खास्त शिक्षकों ने जिला प्रशासन, स्थानीय सांसद और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के जिला अध्यक्ष को पत्र सौंपकर अपना मामला प्रस्तुत करने के लिए प्रधानमंत्री से संक्षिप्त मुलाकात का अनुरोध किया है. प्रभावित शिक्षकों में से एक चिन्मय मंडल ने कहा : हम अलीपुरदुआर में प्रधानमंत्री से मिलना चाहते हैं. हमने स्थानीय सांसद, भाजपा के जिला अध्यक्ष और जिलाधिकारी को पत्र लिखा है. हम प्रधानमंत्री से अनुरोध करते हैं कि वे हमसे बात करें और हमारे मुद्दे को सुलझाने में मदद करें.प्रदेश भाजपा की ओर से अभी तक इस बारे में कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है कि प्रधानमंत्री उनसे मिलेंगे या नहीं. उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मंगलवार को कहा था कि उनकी सरकार उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुसार नये सिरे से शिक्षकों की भर्ती शुरू करेगी. उन्होंने कहा कि साथ ही बर्खास्त किये गये शिक्षकों को बहाल करने के लिए पुनर्विचार याचिका भी दायर की है. आंदोलनकारी शिक्षकों ने इस कदम की आलोचना करते हुए इसे हजारों शिक्षकों के लिए ‘मौत का वारंट’ बताया.
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