मंत्री ने कहा- आयोग के काम का दायरा बढ़ा है, इसलिए उपाध्यक्ष का एक अतिरिक्त पद बढ़ाया गया कोलकाता. बंगाल सरकार ने राज्य के अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा और राज्य अल्पसंख्यक आयोग की कार्य क्षमता बढ़ाने के उद्देश्य से आयोग में एक अतिरिक्त उपाध्यक्ष के पद का सृजन किया है. राज्य विधानसभा ने शुक्रवार को इससे संबंधित- पश्चिम बंगाल अल्पसंख्यक आयोग (संशोधन) विधेयक, 2025 को शुक्रवार को ध्वनिमत से पारित कर दिया. मानसून सत्र के पांचवें दिन वित्त मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) चंद्रिमा भट्टाचार्य ने यह संशोधन विधेयक सदन में पेश किया. इस विधेयक के जरिए अब राज्य अल्पसंख्यक आयोग में दो उपाध्यक्ष रखने का प्रावधान किया गया है. पहले एक ही उपाध्यक्ष का पद था. विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए मंत्री चंद्रिमा ने सदन को बताया कि आयोग के काम का दायरा बढ़ा है, इसलिए उपाध्यक्ष का एक अतिरिक्त पद बढ़ाया गया है. इस निर्णय से आयोग की गतिविधियों में तेजी आयेगी और अध्यक्ष पर काम का दबाव कम होगा. 1996 में इस आयोग का गठन किया गया था. मंत्री ने कहा कि अब तक राज्य अल्पसंख्यक आयोग में नौ सदस्यों, एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष का पद था. कई बार अध्यक्ष पर काम का अत्यधिक बोझ हो जाता था. अब एक और उपाध्यक्ष पद के सृजन से आयोग की कार्य क्षमता में इजाफा होगा. उन्होंने कहा कि हमने यह कदम इसलिए उठाया है, ताकि अल्पसंख्यकों से जुड़े मुद्दों का समाधान तेजी से हो सके और उनके अधिकारों की रक्षा प्रभावशाली ढंग से की जा सके. डेढ़ घंटे की चर्चा के बाद विधेयक को ध्वनि मत से पारित कर दिया गया. वहीं, चर्चा के दौरान आइएसएफ के विधायक नौशाद सिद्दीकी ने कई उदाहरण पेश कर अल्पसंख्यक आयोग की कार्यप्रणाली और अतिरिक्त पद के सृजन के औचित्य पर सवाल उठाये. वहीं, भाजपा विधायक शंकर घोष ने प्रस्ताव दिया कि उपाध्यक्ष के पद पर किसी ऐसे सार्वजनिक व्यक्ति को नियुक्त किया जाये, जो मुसलमान न हो. यानी अल्पसंख्यक समुदाय में आने वाले मुस्लिम को छोड़ अन्य धार्मिक समुदाय जैसे ईसाई, पारसी, बैद्ध, जैन व सिख में से किसी को इस पद पर नियुक्ति की मांग की. इस पर चंद्रिमा ने कहा कि आयोग में सभी छह अल्पसंख्यक धार्मिक समुदाय मुस्लिम, ईसाई, पारसी, बौद्ध, जैन व सिख का प्रतिनिधित्व है. उन्होंने कहा कि संविधान कहता है कि किसी भी समुदाय के साथ कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए, हमारी सरकार इसमें विश्वास करती है. चंद्रिमा ने भाजपा और केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि हम राज्य में धार्मिक आधार पर राजनीति को कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे. बंगाल सभी धर्मों, जातियों और समुदायों के शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की भूमि है. हम नफरत नहीं, विकास की राजनीति में विश्वास रखते हैं. उन्होंने आगे कहा कि इस आयोग के अध्यक्ष को भत्ता (पारिश्रमिक) मिलता है, लेकिन उपाध्यक्षों को कोई भत्ता नहीं मिलता. उन्हें केवल 1,000 रुपये का मीटिंग भत्ता दिया जाता है.
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