पंचक में ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र से भगवान कृष्ण की पूजा की जाती है. हे निलो माधवो, हे माधव हे… हे राई दामोदर… का जाप भी किया जाता है. तुलसी मंडप के पास रंग- बिरंगी रंगोली बना कर राय-दामोदर की आराधना की जाती है.
तुलसी मंडप के समक्ष प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र एवं देवी सुभद्रा की भी रंगोली बना कर पूजा की जाती है. दिनभर में एक ही बार सात्विक भोजन ग्रहण करती हैं. अन्न-भोजन को विशेष विधि- विधान के साथ तैयार किया जाता है. पंचक पर खाये जाने वाले अन्न को हबिसान्न कहा जाता है.
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पंचक का समापन कार्तिक पूर्णिमा के दिन नदी एवं जलाशयों में विशेष स्नान के साथ होता है. मौके पर कई धार्मिक अनुष्ठान का भी आयोजन किया जाता है. कार्तिक पूर्णिम को सरायकेला-खरसावां के ओड़िया समुदाय के लोग बोईतो बंदना उत्सव के रुप में भी मनाते हैं.
बोईतो बंदना के दिन उत्कलिय परंपरा के अनुसार, केला के पेड़ के छिलके से तैयार किये गये नाव को नदी में छोड़ा जाता है. वहीं, नावों को रंग-बिरंगी फूलों से सजाया जाता है. ओड़िया समुदाय की वर्षो पुरानी यह परंपरा अब भी चली आ रही है. ओड़िया समुदाय के लोग कार्तिक पूर्णिमा को सबसे महत्वपूर्ण दिन मानते हैं और इस दिन को हरसंभव पुण्य कार्य करते हैं. कहा जाता है कि पंचक पर पुण्य कार्य करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है.
Posted By : Samir Ranjan.