Azadi Ka Amrit Mahotsav : 14 वर्ष की सुनीति ने अंग्रेज अफसर को मारी थी गोली

देशभर में आजादी का राष्ट्रीय पर्व मनाने की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं. स्वतंत्रता दिवस की आहट होते ही वीर और वीरांगनाओं की कहानियां भी याद आने लगी हैं, जिन्होंने आजादी के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया था ऐसी ही एक वीरांगना थीं 14 साल की सुनीति चौधरी

By Contributor | July 31, 2022 8:00 PM
an image

आजादी का अमृत महोत्सव : क्रांतिकारी सुनीति चौधरी का जन्म 22 मई ,1917 को बंगाल के कोमिला सब – डिविजन में एक मध्यम वर्गीय बंगाली परिवार में हुआ था .1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन अपने जोरों पर था .आंदोलनकारियों पर पुलिस की क्रूरता को देख कर सुनीति के मन में उनसे बदला लेने की भावना प्रबल होने लगी .इसके बाद वह आंदोलनों में हिस्सा लेने लगीं .वह डिस्ट्रिक्ट वालंटियर कॉर्पस की मेजर बनीं .जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने विद्यार्थी संगठन को संबोधित करने के लिए शहर का दौरा किया ,तब सुनीति ने लड़कियों की परेड का नेतृत्व किया . उसी दौरान प्रफुल्ल नलिनी ,शांति मारने के लिए सुधा घोष और सुनीति चौधरी ने आजादी की लड़ाई में लड़कियों को लड़कों के बराबर जिम्मेदारी देने की मांग की .कुछ वरिष्ठ नेताओं के संदेह जताने पर सुनीति ने इसका विरोध किया .

पुलिस ने उन्हें हर तरह की यातनाएं दीं

सुनीति की उम्र इतनी कम थी कि उनकी अंगुली रिवॉल्वर के ट्रिगर तक नहीं पहुंच पाती थी .बावजूद इसके वह रिवॉल्वर से शॉट अपनी मध्यमा उंगली का इस्तेमाल करने लगीं .इनका निशाना जिला मजिस्ट्रेट चार्ल्स जेफ्री बकलैंड स्टीवन था ,जो सत्याग्रह को दबाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार था .14 दिसंबर ,1931 को सुनीति ने साथी शांति घोष के साथ मिल कर उसे गोली मार दी .इसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया .पुलिस ने उन्हें हर तरह की यातनाएं दीं ,लेकिन एक शब्द नहीं बोलाf

जज को भी सिखाया सबक

पेशी के दौरान जज को भी सिखाया सबक जब अदालत में मुकदमा शुरू हुआ ,तो उन्हें देख कर सब हैरान थे .वह थीं .जब उन्हें बैठने के लिए कुर्सी देने से इनकार किया गया ,तो ओर पीठ करके खड़ी हो गयीं .उन्होंने किसी भी ऐसे मना से मना कर दिया ,जो शिष्टाचार के भी पालन नहीं मुस्कुरा जज की देने से इंसान को सम्मान सामान्य नियमों का सकता था .जब स्टीवन के एसडीओ गवाह के रूप में कोर्ट में आये और बनावटी कहानी गढ़ने लगे,तब उन्होंने नारे लगाना शुरू कर दिया .इससे कोर्ट में हल मच गयी .

जेल की सजा काटने के बाद बनी आजाद भारत में मशहूर डॉक्टर

अदालत ने दोनों को आजीवन कारावास की सजा सुनायी .इस पर दोनों दुखी हुई कि इन्हें शहीद होने से रोक लिया गया .शांति को जेल में दूसरी श्रेणी के अन्य क्रांतिकारियों के साथ रखा गया ,जबकि सुनीति चौधरी को तीसरी श्रेणी में भेज दिया गया ,जहां चोर और जेबकतरों को रखा जाता था .वह पुलिस द्वारा अपने माता – पिता पर हो रहे अत्याचारों और अपने बड़े भाई की गिरफ्तारी की खबर को सुनकर भी रोजमर्रा के काम में व्यस्त रहतीं .अपने छोटे भाई की भूख और बीमारी से मरने की खबर भी सुनीति को तोड़ नहीं पायी .

संबंधित खबर
संबंधित खबर और खबरें
होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version