मांदर की थाप पर झूमे लोग
कार्यक्रम में पुरुषों के मांदर की थाप पर महिलाएं एवं युवतियों ने भी जमकर पारंपरिक नृत्य किया. वहीं, महिलाओं ने हाथ जोड़कर कदम से कदम मिलाते हुए पारंपरिक गीतों पर खूब नृत्य कर समां बांध दिया. नृत्य-संगीत का कार्यक्रम देर रात तक चलता रहा. पुजारी ने पूजा के बाद सखुआ का फूल प्रसाद के रूप में सभी को दिया.
सोहराय के बाद दूसरा बड़ा पर्व है बाहा
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि पीपुल्स वेलफेयर एसोसिएशन के सचिव विजय सिंह गागराई ने कहा कि बाहा संताल और आदिवासियों का सोहराय के बाद दूसरा बड़ा पर्व है. संताली लोग इस पर्व को बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं. यह पर्व पतझड़ के बाद पेड़ों में नई पत्तियों एवं फूल के आने की खुशी में मनाया जाता है. उन्होंने कहा कि मान्यता है कि हिन्दी नववर्ष के स्वागत के लिए प्रकृति भी पूरी पृथ्वी को सजाती है. आदिवासी समाज भी प्रकृति के साथ इस खुशी में शामिल होते हैँ. कार्यक्रम में मुखिया प्रतिनिधि राजेश गागराई, किरण गागराई, मुंडा जुनुल बोदरा समेत काफी संख्या में ग्रामीण उपस्थित थे.
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क्या है बाहा पर्व
बाहा पोरोब यानी बाहा पर्व संताल, उरांव, मुंडा समेत अन्य जनजातियों का पर्व है. बाहा का अर्थ फूल होता है. इस पर्व में महिला-पुरुष के साथ-साथ बच्चे परंपरागत कपड़े पहनकर मांदर की थाप पर खूब झूमते हैं.