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दिग्गज सोमनाथ चटर्जी को हराने वाली नेता
नंदीग्राम ममता के लिए कई अहम रिजल्ट लेकर आता रहा है. 1984 में सोमनाथ चटर्जी को लोकसभा चुनाव हराकर दिल्ली पहुंचने वाली ममता बनर्जी के पॉलिटिकल करियर में कई उतार-चढ़ाव आए. 1989 में चुनाव हारने वालीं ममता बनर्जी 1991 में लोकसभा पहुंची और 1992 में कोलकाता की बिग्रेड मैदान से इस्तीफे का एलान कर डाला. आगे चलकर 1998 में ममता ने तृणमूल कांग्रेस का गठन किया था.
विद्रोही स्वभाव… ममता… और, एकला चलो
1998 से 2001 तक ममता बनर्जी एनडीए में रहीं. यहां भी उनका विद्रोही स्वभाव आड़े आया. आखिर में उन्होंने एनडीए से भी दूरी बना ली. 2004 के लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन करने वाली टीएमसी की सुप्रीमो ममता बनर्जी ने सिंगुर और नंदीग्राम में किसानों की जमीन के लिए लड़ाई लड़ी. इसका फायदा टीएमसी को साल 2009 के लोकसभा चुनाव में मिला. टीएमसी को 42 में से 19 सीटें मिली. यूपीए-2 की सरकार में रेल मंत्री बनने वाली ममता ने बंगाल के लिए ताबड़तोड़ योजनाओं का ऐलान कर डाला.
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2016 के बाद 2021 में भी खेला होबे या नहीं?
केंद्र में मंत्री रहते हुए भी ममता बंगाल में परिवर्तन का नारा देती रहीं. 2011 के विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी ने 294 सीटों में से 184 पर जीत दर्ज की. इसके बाद ममता ने बंगाल का रूख किया. वो तीन दशकों से ज्यादा समय तक बंगाल की सत्ता पर काबिज वाम दलों को हराकर सीएम बनीं थी. 2016 के विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी ने 211 सीटों पर जीत हासिल की. इस बार टीएमसी सभी 294 सीटों पर जीत के दावे कर रही है. अब, इंतजार 2 मई के रिजल्ट डे का है.
Posted: Abhishek.