वहीं मुस्लिम पक्ष से सीनियर एडवोकेट सैयद फरमान अहमद नकवी ने कहा कि जिला जज के आदेश में खामी है. व्यास परिवार ने अपने पूजा के अधिकार को काशी विश्वनाथ ट्रस्ट को ट्रांसफर कर दिया था. उन्हें अर्जी दायर करने का हक नहीं है. डीएम पहले से ही काशी विश्वनाथ ट्रस्ट के सदस्य हैं. उन्हें रिसीवर कैसे नियुक्त किया जा सकता है. किसी भी तहखाने का दस्तावेजों में उल्लेख नहीं है.
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पांच महिलाओं की पूर्व याचिका के आधार पर, एएसआई ने काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का सर्वेक्षण किया था. सर्वे रिपोर्ट के आधार पर ज्ञानवापी मस्जिद का तहखाना खोल दिया गया और काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट के पुजारियों ने पूजा शुरू की थी. इस पूजा के विरोध में अगली सुबह तड़के तीन बजे मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में पूजा रोकने की याचिका दाखिल की थी. जिसे SC ने खारिज कर दिया था. इसके बाद मुस्लिम पक्ष अपील के लिए हाईकोर्ट गया था.
नवंबर 1993 तक सोमनाथ व्यास जी का परिवार तहखाने में पूजा पाठ करता था, जिसे तत्कालीन मुलायम सिंह यादव सरकार के शासनकाल में बंद करा दिया गया था. व्यास जी तहखाना केस में मात्र चार महीने में जिला जज कोर्ट ने फैसला दिया है. वादी शैलेंद्र कुमार पाठक ने 25 सितंबर को सिविल जज सीनियर डिवीजन कोर्ट में पूजा का अधिकार देने का वाद दाखिल किया था. इसके बाद उसी दिन इसे जिला जज कोर्ट में स्थानांतरित करने का प्रार्थना पत्र दिया था. 7 अक्तूबर को सिविल जज ने इस मामले को जिला जज कोर्ट में स्थानांतरित करने का आदेश दिया था.
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