ज्ञानवापी केस: क्या है प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट यानी पूजा स्थल कानून, बेहद आसान भाषा में यहां जानें सबकुछ

Places of Worship Act: ज्ञानवापी मस्जिद प्रकरण में सबसे चर्चित मुद्दा है प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट यानी पूजा स्थल कानून. इस एक्ट का हवाला देकर सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम पक्ष की ओर से दायर याचिका में कहा गया कि वाराणसी कोर्ट का आदेश 'प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991' का उल्लंघन है.

By Prabhat Khabar News Desk | May 25, 2022 7:46 PM
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Places of Worship Act: ज्ञानवापी मस्जिद प्रकरण में सबसे चर्चित मुद्दा है प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट यानी पूजा स्थल कानून. इस एक्ट का हवाला देकर सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम पक्ष की ओर से दायर याचिका में कहा गया कि वाराणसी कोर्ट का आदेश ‘प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991’ का उल्लंघन है. क्या है प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट और क्या कहते हैं इसके प्रावधान. आइए जानते हैं कानूनी जानकारों से.

राम मंदिर आंदोलन के समय बना ये एक्ट 

कानूनी जानकर नित्यानन्द राय के अनुसार प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 में लागू किया गया था. उस वक्त राम मंदिर आंदोलन अपने चरम सीमा पर थी. इस आंदोलन का प्रभाव देश के अन्य मंदिरों और मस्जिदों पर भी पड़ा. उस वक्त अयोध्या के अलावा भी कई विवाद सामने आने लगे. फिर क्या था इस पर विराम लगाने के लिए ही उस वक्त की नरसिम्हा राव सरकार ये कानून लेकर आई थी.

इस एक्ट के अनुसार 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता. यदि कोई इस एक्ट का उल्लंघन करने का प्रयास करता है तो उसे जुर्माना और तीन साल तक की जेल भी हो सकती है. यह कानून तत्कालीन कांग्रेस प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव सरकार 1991 में लेकर आई थी. यह कानून तब आया जब बाबरी मस्जिद और अयोध्या का मुद्दा बेहद गर्म था. धारा कहती है कि 15 अगस्त 1947 में मौजूद किसी धार्मिक स्थल में बदलाव के विषय में यदि कोई याचिका कोर्ट में पेंडिंग है, तो उसे बंद कर दिया जाएगा.

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क्या कहता है ये एक्ट 

इस एक्ट के अनुसार जो धर्म स्थल जिस स्थिति में है, उसे चेंज नही किया जाएगा. यदि कोई विवाद ये कहता है कि मंदिर की जगह मस्जिद था तो इस तरह के मामलों में निर्णय कोर्ट ही देगी. इस एक्ट का मतलब ये कतई नहीं है कि धार्मिक स्थल को लेकर यदि कोई विवाद है और उसके पुरे साक्ष्य मौजूद हैं तो उसका निपटारा ही नहीं किया जा सकता. इस एक्ट के अंतर्गत 3 धाराएं सम्मिलित है.

  • प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट की धारा -3 कहती है कि किसी भी धार्मिक स्थल को पूरी तरह या आंशिक रूप से किसी दूसरे धर्म में बदलने की अनुमति नहीं है. इसके साथ ही यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि एक धर्म के पूजा स्थल को दूसरे धर्म के रूप में ना बदला जाए या फिर एक ही धर्म के अलग खंड में भी ना बदला जाए.

  • उसी प्रकार धारा -4(1) कहती हैं कि 15 अगस्त 1947 को एक पूजा स्थल का चरित्र जैसा था उसे वैसा ही बरकरार रखा जाएगा.

  • धारा- 4 (2) के अनुसार यह उन मुकदमों और कानूनी कार्यवाहियों को रोकने की बात करता है जो प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट के लागू होने की तारीख पर पेंडिंग थे.

  • धारा – 5 के मुताबिक यह एक्ट रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले और इससे संबंधित किसी भी मुकदमे, अपील या कार्यवाही पर लागू नहीं करेगा.

  • यही धारा इस एक्ट के तहत ध्यान देने योग्य है. इसके अंतर्गत कुछ स्थलों को बाहर रखा गया है. जैसे सारनाथ पुरातात्विक स्थल, बेनी माधव धरहरा समेत कई ऐसे स्थान है. इन सारी जगहों पर यह प्रावधान लागू नहीं होंगे.

इस एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम पक्ष की ओर से दायर याचिका में वाराणसी कोर्ट के आदेश को पूजा स्थल कानून,1991 का उल्लंघन बताया गया है. याचिकाकर्ता ने पूजा स्थल अधिनियम 1991 की धारा दो, तीन और चार की संवैधानिक वैद्यता को चुनौती दी है. याचिकाकर्ता का कहना है कि ये तीनों धाराएं भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14,15, 21, 25,26 और 29 का उल्लंघन करती हैं. याचिका के मुताबिक ये सभी हमारे संविधान की मूल भावना और प्रस्तावना के खिलाफ हैं.

ज्ञानवापी मामले में  लागू होगा ये एक्ट ?

बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष विवेक शंकर तिवारी बताते हैं कि ऐतिहासिक धरोहर, भवन, इमारत, संग्रहालय इन सभी स्थलों पर 1991 एक्ट लागू नहीं होता है. ज्ञानवापी मस्जिद प्रकरण में यह वर्शिप एक्ट इसलिए लागू नहीं होता क्योंकि यह ऐतिहासिक है. इसकी सरंचना 100 साल से पुरानी है. ज्ञानवापी का धार्मिक प्रारूप कहता है कि 1947 से पहले यहां माता श्रंगार गौरी की पूजा हर रोज होती रही है. 1991 तक उनकी पूजा होती रही है. अभी भी साल में एक बार इसकी पूजा हो रही है. अब वहां शिवलिंग मिला है और किसी स्थान पर नमाज पढ़ने मात्र से उस स्थान का धार्मिक प्रारूप नहीं बदलता. महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि पूजा स्थल कानून 1991 में बना, उससे पहले 1983 में काशी विश्वनाथ एक्ट बन चुका है. ये पूरा परिसर काशी विश्वनाथ एक्ट के तहत संचालित होता है. 1991 का एक्ट ये भी कहता है कि ये एक्ट उन परिसरों पर लागू नहीं होगा जो किसी और एक्ट से संचालित होते हैं. इस आधार पर ज्ञानवापी प्रकरण में यह एक्ट लागू नहीं होता.

रिपोर्ट – विपिन सिंह

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